Himachal News: हिमाचल प्रदेश में जनगणना (Census) की उल्टी गिनती शुरू हो गई है और सरकार ने इसके लिए कमर कस ली है। आगामी 1 जनवरी 2026 से प्रदेश की सभी प्रशासनिक सीमाओं को स्थिर कर दिया जाएगा, यानी इनमें कोई भी बदलाव नहीं होगा। यह सख्त कदम इसलिए उठाया गया है ताकि जनगणना के दौरान डेटा एकदम सटीक रहे। शिमला के विंटर कार्निवल में भी प्रशासन पूरी ताकत से लोगों को जागरूक कर रहा है। विभाग यह सुनिश्चित कर रहा है कि हर नागरिक डिजिटल गणना के महत्व को समझे।
गजट नोटिफिकेशन जारी, सीमाएं होंगी लॉक
जनगणना प्रक्रिया को निर्बाध रूप से चलाने के लिए गजट नोटिफिकेशन जारी हो चुका है। जीएडी विभाग सक्रिय मोड में है और जन-जागरूकता फैला रहा है। शिमला के प्रसिद्ध मालरोड पर विभाग ने एक विशेष स्टॉल लगाया है। यहां पर्यटकों और स्थानीय लोगों को बताया जा रहा है कि इस बार की गणना हाई-टेक होगी। डिजिटल उपकरणों के जरिए डेटा इकट्ठा किया जाएगा। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और गलती की गुंजाइश कम होगी।
दो चरणों में पूरा होगा यह महाअभियान
देश की विकास यात्रा में यह जनगणना 2027 एक मील का पत्थर साबित होने वाली है। इसका काम दो मुख्य चरणों में बंटा है। पहला चरण अप्रैल से सितंबर 2026 के बीच चलेगा। इसमें मकानों की लिस्टिंग होगी और बुनियादी सुविधाओं का डेटा लिया जाएगा। दूसरा महत्वपूर्ण चरण फरवरी 2027 में शुरू होगा। इसमें घर-घर जाकर हर व्यक्ति की सामाजिक और आर्थिक जानकारी दर्ज की जाएगी। याद रहे, कोरोना महामारी के कारण 2021 की जनगणना टल गई थी, जिसे अब पूरा किया जा रहा है।
बर्फीले इलाकों के लिए बना विशेष ‘मास्टर प्लान’
केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश के भौगोलिक हालातों को देखते हुए स्मार्ट रणनीति बनाई है। राज्य के दुर्गम, बर्फीले और गैर-समानांतर क्षेत्रों में यह काम पहले ही निपटा लिया जाएगा। सरकार का लक्ष्य है कि सितंबर 2026 तक हिमाचल, उत्तराखंड, लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के कठिन हिस्सों में जनसंख्या गणना पूरी हो जाए। यह फैसला इसलिए लिया गया है ताकि सर्दियों में खराब मौसम और बर्फबारी से काम में कोई रुकावट न आए।
भविष्य की योजनाओं की बनेगी नींव
यह केवल सिरों की गिनती नहीं है, बल्कि देश के भविष्य का रोडमैप है। इससे प्राप्त आंकड़े ही तय करेंगे कि आने वाले समय में सड़कें, स्कूल और अस्पताल कहां बनेंगे। डेटा संग्रह के लिए कर्मचारियों और पर्यवेक्षकों को तीन-स्तरीय सख्त प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्हें टैबलेट और अन्य डिजिटल गैजेट्स चलाने में एक्सपर्ट बनाया जाएगा। 1872 से चली आ रही इस परंपरा में जनभागीदारी बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया पर भी बड़ा अभियान चलाया जा रहा है।
