Russian Oil: रुस का कच्चा तेल अभी भी दुनिया भर के खरीदारों तक पहुंच रहा है। लेकिन यह तेल कैसे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पहुंच रहा है, इसको लेकर रहस्य बना हुआ है। रूसी तेल के कारोबार की निगरानी रखने वाली एजेंसियां यह पता नहीं लगा पा रही हैं कि किन मालवाही जहाजों से यह तेल पहुंचाया जा रहा है।
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रूस पर पश्चिमी देशों ने सख्त प्रतिबंध लगा रखे हैं। पिछले पांच दिसंबर से उन्होंने रूसी तेल की अधिकतम कीमत भी तय कर दी। इसके तहत जो ट्रांसपोर्ट या बीमा कंपनी उस कीमत से अधिक दाम पर रूसी तेल की बिक्री में सहयोग करेगी, उस पर पश्चिमी देश प्रतिबंध लगा सकेंगे। तेल कारोबार से जुड़े लोगों लोगों के मुताबिक रहस्यमय मालवाही जहाज रूसी तेल ढो रहे हैं, जिनके बारे में पूरी जानकारी मौजूद नहीं है। बताया जाता है कि ऐसे जहाजों की संख्या लगभग 600 से है और यह बढ़ रही है। यह संख्या तेल ढुलाई में लगे दुनिया में मौजूद कुल जहाजों के दस फीसदी के बराबर है।
अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूसी तेल ढो रहे जहाजों का मालिक कौन है, यह सवाल पहेली बना हुआ है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी प्रतिबंध लगने के बाद पश्चिमी देशों की जहाजरानी कंपनियों ने रूसी तेल को सेवा देनी रोक दी। उसके बाद नए जहाज संचालक सामने आए, जिनकी पहचान गुप्त बनी हुई है। अनुमान है कि इन जहाजों का संचालन दुबई या हांगकांग में स्थित कुछ फर्जी कंपनियां कर रही हैं। उन्होंने इस काम में कई जहाज भी लगाए हैं, जिनकी उम्र पूरी हो चुकी है और जिन्हें चलाना अब सुरक्षित नहीं है।
सीएनएन की रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस पश्चिमी प्रतिबंधों को बेअसर साबित करने पर अडिग है, इसलिए रहस्यमय जहाजों का महत्त्व बढ़ गया है। रूसी तेल का मुख्य बाजार अब यूरोप से हट कर भारत और चीन हो गए हैं। उन क्षेत्रों में अस्पष्ट पहचान वाले जहाजों का आना-जाना बढ़ा है।
विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे जहाजों की संख्या बढ़ना यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद विश्व तेल बाजार में आए नाटकीय बदलाव की एक मिसाल है। रूस दुनिया में तेल का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है। पिछले एक साल में उसने दशकों से तेल कारोबार के चल रहे तौर-तरीकों को बदल दिया है। इससे दुनिया की ऊर्जा व्यवस्था दो भागों में बंट गई है।
पुराने जहाजों को तोड़ने का काम करने वाली कंपनी ईए गिब्सन में रिसर्च प्रमुख रिचर्ड्स मैथ्यूज ने सीएनएन से कहा- ‘अब दुनिया में ऐसे मालवाहक जहाज हैं, जो किसी प्रकार के रूसी कारोबार में शामिल नहीं हैं। दूसरी तरफ ऐसे जहाज भी हैं, जो सिर्फ रूसी कारोबार में शामिल हैं।’
पिछले एक साल में यूरोप ने रूसी ऊर्जा से अपने को अलग कर लिया है। लेकिन एशिया में रूसी एनर्जी के खरीदारों की संख्या बढ़ गई है। इस साल जनवरी में चीन और भारत के लिए रूसी तेल निर्यात रिकॉर्ड सीमा तक पहुंच गया। विशेषज्ञों के मुताबिक रूसी तेल ढोने वाले जहाज अक्सर अपने एआईएस ट्रांसपोंडर को स्विच्ड ऑफ (बंद) कर देते हैं, जिससे उनकी निगरानी करना मुश्किल हो जाता है।