हमें कोई “इंटरनेशनल वीमेनज डे” का मैसज न करे, क्योंकि दिवस हमेशा कमज़ोर के मनाए जाते हैं। जैसे कि मज़दूर दिवस होता है लेकिन कभी थानेदार दिवस नहीं होता।
एक दिन की वाह-वाही कमजोरों को मुबारक हो, हम तो तब महिला दिवस मनाएंगे। जब सब महिलाओं पर अपराध करने वाले अपराधियों को सज़ा होगी। इंसाफ मांगना नहीं पड़ेगा, न खरीदना पड़ेगा और न ही हमें जस्टिस फ़ॉर फलाना-ढिमकान का ट्रेंड चलना पड़ेगा। जब आप महिला के शरीर के अंगों की गिनती करते हुए सोशल मीडिया पर गालियां देना छोड़ देंगे। हम तो तब मनाएँगे जब सेंट्रर तर्ज़ पर स्टेट में भी चाइल्ड केअर लीव महिलाओं को मिलने लगेगी। हम तो तब मनाएंगे, जब सरकार, अधिकारी और नेता यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि रात को 12 बजे निकलने पर यह न बोला जाए कि लड़कियां रात को नहीं निकल सकतीं हैं और वो इस या उस जगह सुरक्षित नहीँ हैं।
जब लड़कियों के साथ दुराचार होने पर उल्टा उसी को चरित्र प्रमाण पत्र नहीं बांटा जायेगा। जब बलात्कारियों के लिए सिर्फ मौत की सज़ा की लड़ाई लड़ी जाएगी, उनके पक्ष में रैलियां नहीं निकली जाएंगी। जब महिलाओं के साथ अत्याचार करने वालों में जाति-धर्म, अमीर-गरीब न देखकर सज़ा की लड़ाई लड़ी जाएगी। जब मासिकधर्म के दौरान औरतों को अशुद्ध कहना और उनसे दुर्व्यवहार करना छोड़ दोगे।
जब औरत अलग-अलग हाथों बेचने, खरीदने व भोगने की वस्तु नहीं रहेगी। जब औरत को “वैश्य- रंडी- कुलटा” के नाम से गालियां देना बन्द कर दोगे। जब आप औरत का राजनैतिक विरोध भद्दी टिपणियां न करते हुऐ मुद्दों पर करेंगे। जब किसी औरत के चेहरे की झुर्रियों में झांक के उसके दिल का दर्द देखना शुरू कर दोगे तब हम महिला दिवस मनायेंगे।
जब आपको अपनी बहन ‘बहन’ और दूसरे की आइटम नहीं लगेगी, तब हम महिला दिवस मनाना शुरू करेंगे। जब किसी महिला की मदद करने की एवज में उसे अपने साथ सोने के लिए आमंत्रित नहीं करेंगे। आप न ही नौकरी का प्रलोभन देकर अपनी हवस मिटाने की इच्छा रखेंगे। जब न्याय के डर से आधी रात को किसी लड़की को अग्नि के सपुर्द नहीं करेंगे, घटिया सिस्टम के दबाव में आकर। जब आप दोगले नेताओं के जहरीले व्यानों में न फंस कर, न झूठे रीति रिवाजों का फिक्र करते हुये सचे दिल से उसके अधिकारों को सरक्षण देंगे और उसे भी। जब न्याय की मांग कर रहे परिवार व वकील किसी गाड़ी के नीचे नहीं कुचले जायेंगे चाहे अपराधी कितना ही बड़ा रुतवेदार क्यों न हो।
जब दहेज के नाम पर खाली बारातें नहीं लौटेंगी, जब लड़की का बाप भी बड़ी सी पगड़ी लगाकर सीना तान के बेटी को विदा करेगा और डरेगा नहीं कि कोई कमी रहेगी तो लड़की को ताने मिलेंगे। जब बस में महिला के चढ़ते ही पुरुष सीट पूरे सम्मान के साथ छोड़ दिया करेंगे, जब एक अकेली राह चलती लड़की मौका नहीं जिमेवारी लगने लगेगी। जब कोई महिला सेनेटरी पेड लेते हुए हिचकना छोड़ देगी, बल्कि यह सरकारी कार्यालय और स्कूल में निशुल्क उपलब्ध करवाए जाएँगे। जब महिला सांसद संसद में एक स्वर में गूँजकर अपने अधिकारों को मनवाएँगी, बिना राजनीति किये हुए। तब हम भी महिला दिवस मनाएंगे क्योंकि फिलहाल तो कई जगह औरत को मुठी भर इज़्ज़त तो क्या जीने के लायक भी नहीं समझ जाता है।
-तृप्ता भाटिया ✍️