New Delhi News: आजादी की लड़ाई में जोश भरने वाला वंदे मातरम् गीत आजकल विवादों में है। इस ऐतिहासिक गीत को लेकर भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने आ गई हैं। भाजपा ने कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस ने 1937 में सांप्रदायिक राजनीति के चलते गीत के टुकड़े कर दिए थे। बंकिम चंद्र चटर्जी ने यह गीत 1875 में लिखा था। भाजपा का मानना है कि कांग्रेस ने संक्षिप्त संस्करण अपनाकर देश का अपमान किया।
आनंदमठ से मिली थी पहचान
यह गीत बंकिम चंद्र के मशहूर उपन्यास ‘आनंदमठ’ में 1882 में छपा था। इसकी कहानी संन्यासी विद्रोह और 1770 के बंगाल अकाल पर आधारित है। वंदे मातरम् के शुरुआती दो छंदों में भारत भूमि की सुंदरता का वर्णन है। वहीं, बाद के छंदों में मातृभूमि को देवी के रूप में दिखाया गया है। इसमें हिंदू संन्यासियों के विद्रोह की झलक भी मिलती है।
नेहरू ने क्यों लिया था फैसला?
साल 1937 में जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने एक बड़ा निर्णय लिया। फैजपुर की सभाओं के लिए वंदे मातरम् के केवल पहले दो छंदों को ही चुना गया। गीत के अंतिम छंदों में हिंदू देवियों का सीधा उल्लेख था। उस समय मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों को इस पर आपत्ति थी। इसी वजह से कांग्रेस ने बाकी हिस्सों को छोड़ने का तर्क दिया था।
जब हिंदू-मुस्लिम ने साथ लगाया नारा
इतिहास बताता है कि यह गीत एकता का प्रतीक था। 20 मई 1906 को बारीसाल (अब बांग्लादेश) में एक ऐतिहासिक जुलूस निकला था। इसमें 10 हजार से ज्यादा हिंदू और मुसलमानों ने हिस्सा लिया। सभी ने एक सुर में वंदे मातरम् के नारे लगाए थे। यह घटना साबित करती है कि उस दौर में इस गीत को लेकर दोनों समुदायों में कोई मतभेद नहीं था।
टैगोर से लेकर संविधान तक का सफर
रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 के कलकत्ता अधिवेशन में इसे पहली बार गाया था। इसके बाद यह राष्ट्रीय स्तर पर छा गया। 7 अगस्त 1905 को इसका इस्तेमाल पहली बार राजनीतिक नारे के तौर पर हुआ। मैडम भीकाजी कामा ने 1907 में बर्लिन में तिरंगा फहराया था, उस पर भी वंदे मातरम् लिखा था। अंत में 1950 में संविधान सभा ने इसे भारत के राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया।
