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शुक्रवार, दिसम्बर 8, 2023

Valmiki Jayanti 2023; जानें कैसे डाकू रत्नाकर बना महान महर्षि वाल्मिकी, जानें रोचक कहानी

Maharishi Valmiki Jayanti 2023: हिंदू कैलेंडर के अनुसार, आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को वाल्मिकी जयंती मनाई जाती है। इस साल वाल्मिकी जयंती 28 अक्टूबर को मनाई जाएगी. महर्षि वाल्मिकी सनातन धर्म के सर्वश्रेष्ठ गुरुओं में जाने जाते हैं। वह सनातन धर्म के प्रथम कवि भी थे। महर्षि वाल्मिकी ने महाकाव्य रामायण की रचना की। प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों में एक नाम वाल्मिकी जी का भी आता है। वाल्मिकी जी एकमात्र ऐसे महान ऋषि थे जिन्होंने देव वाणी संस्कृत में महान महाकाव्य रामायण महाकाव्य की रचना करके लोगों को भगवान श्री राम के अद्वितीय चरित्र से परिचित कराया। उनके द्वारा लिखी गई रामायण को वाल्मिकी रामायण कहा जाता है। हिंदू धर्म की महान कृति महाकाव्य रामायण श्री राम के जीवन और उनसे जुड़ी घटनाओं पर आधारित है, जो जीवन के विभिन्न कर्तव्यों का परिचय देता है। वाल्मिकी रामायण की रचना के कारण ही वाल्मिकी जी को समाज में इतनी प्रसिद्धि मिली। शास्त्रों में उनके पिता महर्षि कश्यप के पुत्र वरुण या आदित्य माने गए हैं, एक बार वे गहरे ध्यान में इस प्रकार बैठे कि दीमकों ने उनके शरीर को अपना घर बना लिया, तभी से वे वाल्मिकी कहलाये।

महर्षि वाल्मिकी

महर्षि बनने से पहले, वाल्मिकी रत्नाकर नामक एक खूंखार डाकू के रूप में जाने जाते थे, जो अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था। एक बार देवर्षि नारद मुनि रत्नाकर की मुलाकात एक सुनसान जंगल में एक डाकू से हुई और उसने नारद जी को लूटने की कोशिश की, तब नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि वह ऐसे घृणित कार्य क्यों करता है। इस पर रत्नाकर ने कहा कि मुझे अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए ऐसा काम करना पड़ता है। इस पर नारद ने प्रश्न पूछा कि आप जो भी अपराध करते हैं और जिस परिवार के लिए आप इतने अपराध करते हैं, क्या वे आपके पापों में भागीदार बनने के लिए तैयार होंगे? यह जानकर वह हैरान रह गया।

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नारद जी ने कहा कि यदि तुम्हारे परिवार वाले इस कार्य में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो तुम उनके लिए यह पाप क्यों करते हो? यह सुनकर डाकू रत्नाकर ने नारद जी के पैर पकड़ लिए और डाकू का जीवन छोड़ दिया और नारद जी द्वारा दिया गया राम का वचन स्वीकार कर लिया। -नाम जप की कठोर तपस्या करने लगे। परंतु अनेक पाप कर्मों के कारण वह अपनी जीभ से राम नाम का उच्चारण नहीं कर पाता था। वह राम की जगह ‘मरा-मरा’ जपने लगा। राम जी की कृपा से वे ‘मरा’ का जप करते-करते ‘राम’ बन गए और जपते-जपते रत्नाकर ऋषि वाल्मिकी बन गए, जिनके संरक्षण में माता सीता और उनके दोनों तेजस्वी पुत्र लव और कुश सर्वशक्तिमान हो गए।

वाल्मिकी रामायण

एक बार महर्षि वाल्मिकी नदी के किनारे क्राउच पक्षियों के एक जोड़े को देख रहे थे, यह जोड़ा प्रेमक्रीड़ा में लीन था, तभी एक शिकारी ने क्राउच पक्षियों के जोड़े में से एक को मार डाला। नर पक्षी की मौत से दुखी होकर मादा पक्षी विलाप करने लगती है। इस विलाप को सुनकर बाल्मीकि के मुख से स्वत: ही निकल पड़ा मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वती समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकं अवधिः काममोहितम्। यही श्लोक उभरा और महाकाव्य रामायण का आधार बना।

महर्षि वाल्मिकी जयंती

महर्षि वाल्मिकी की जयंती पूरे देश में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस अवसर पर शोभा यात्राएं भी निकाली जाती हैं। महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित पवित्र ग्रंथ रामायण प्रेम, त्याग, तपस्या और यश की भावनाओं को महत्व देता है। वाल्मिकी जी ने रामायण लिखकर सभी को सद्मार्ग पर चलने का मार्ग दिखाया।

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