Uttarakhand News: उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र में एक बड़ा सामाजिक बदलाव देखने को मिला है। यहाँ बिजनू बिजनाड गांव में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही एक पुरानी परंपरा टूट गई है। दलित समाज ने इतिहास रचते हुए पहली बार अपना अलग ‘स्याणा’ (मुखिया) चुना है। बूढ़ी दीपावली के मौके पर नए मुखिया को लकड़ी के हाथी पर बैठाकर पूरे गांव में घुमाया गया।
पुलिस के साये में नई शुरुआत
इस ऐतिहासिक बदलाव के लिए गांव के 35 दलित परिवारों को प्रशासन की मदद लेनी पड़ी। इन परिवारों ने पहले ही जिलाधिकारी से सुरक्षा की मांग की थी। इसके बाद चकराता के एसडीएम और भारी पुलिस बल की मौजूदगी में यह प्रक्रिया पूरी की गई। दलित परिवारों ने सुनील कुमार को अपना स्याणा चुना। उन्हें परंपरा के अनुसार काठ के हाथी पर बैठाकर सम्मान दिया गया।
एक गांव में अब दो मुखिया
ब्रिटिश काल से यहां स्याणा प्रथा लागू है। पहले पूरे गांव का एक ही मुखिया होता था जो अक्सर उच्च वर्ग से आता था। अब बिजनू बिजनाड गांव में दो मुखिया हो गए हैं। गांव के 13 परिवारों ने पुरानी परंपरा वाले स्याणा का समर्थन किया। वहीं, 35 दलित परिवारों ने अपनी अलग राह चुनी। स्थानीय लोगों के अनुसार अलग स्याणा चुनने पर कोई कानूनी रोक नहीं है।
क्या होती है स्याणा व्यवस्था?
उत्तराखंड में यह घटना चर्चा का विषय बनी हुई है। जौनसार बावर के 359 गांवों में यह व्यवस्था लागू है। स्याणा गांव का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रधान होता है। उसके पास आपसी विवाद सुलझाने और समाज के निर्णय लेने का अधिकार होता है। अंग्रेजों ने इसे लगान वसूली के लिए शुरू किया था, लेकिन अब यह एक सामाजिक पद बन चुका है।
