Nainital News: उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) के खिलाफ एक अहम फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की पीठ ने विभाग में वर्षों से कार्यरत ठेका श्रमिकों के पक्ष में फैसला दिया। अदालत ने दिल्ली के औद्योगिक न्यायाधिकरण के आदेश को बरकरार रखा है। इस आदेश के तहत श्रमिकों को बकाया वेतन और पुनः नियुक्ति का लाभ मिलेगा।
यह मामला संजय सिंह, अमित कुमार और अन्य श्रमिकों से जुड़ा है। इन श्रमिकों ने वर्ष 2004 से सीपीडब्ल्यूडी में वायरमैन के तकनीकी कार्य किए थे। श्रमिकों का दावा था कि उन्होंने हर साल 240 दिन से अधिक काम किया। फिर भी विभाग ने बिना किसी नोटिस के उनकी सेवाएं समाप्त कर दी थीं।
श्रमिकों के खिलाफ हुई दो बार कार्रवाई
वर्ष 2012 में पहली बार इन श्रमिकों की छंटनी की गई थी। वार्ता के बाद उन्हें दोबारा सेवा में ले लिया गया। लेकिन 2015 में उन्हें फिर से हटा दिया गया। श्रमिकों ने अदालत में दलील दी कि उनका काम सीधे विभागीय अधिकारियों की देखरेख में होता था। इस आधार पर वे वास्तव में विभाग के कर्मचारी थे।
अदालत ने श्रमिकों की इस दलील को सही माना है। न्यायालय ने कहा कि जब काम नियमित और स्थायी प्रकृति का हो तो ठेका प्रणाली महज दिखावा है। अदालत ने इसे शोषण और अनुचित श्रम व्यवहार बताया। सेवा समाप्ति का यह कदम श्रम कानूनों के विरुद्ध पाया गया।
ठेका प्रथा पर अदालत की सख्त टिप्पणी
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ठेका प्रथा के सहारे श्रमिकों के अधिकार नहीं छीने जा सकते। लंबे समय तक लगातार काम करने वाले श्रमिकों को ठेके का हवाला देकर नहीं हटाया जा सकता। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि न्यूनतम वेतन की मांग के बाद सेवा समाप्ति विभाग की मंशा पर सवाल खड़ा करती है।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सीपीडब्ल्यूडी और उसके इंजीनियरों की चार अलग-अलग याचिकाओं को खारिज कर दिया। अदालत ने औद्योगिक न्यायाधिकरण के आदेश को बरकरार रखा है। इस आदेश के अनुसार श्रमिकों को 20 प्रतिशत बकाया वेतन दिया जाएगा। साथ ही उनकी पुनः नियुक्ति पर सरकारी नीति के अनुसार विचार किया जाएगा।
यह फैसला देश भर में सरकारी विभागों में काम कर रहे ठेका श्रमिकों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करता है। अदालत ने श्रम कानूनों के संरक्षण और श्रमिक अधिकारों के महत्व को रेखांकित किया है। इस निर्णय से समान परिस्थितियों में काम कर रहे अन्य श्रमिकों को भी न्याय की उम्मीद मिलेगी।
