Ashoknagar News: मध्य प्रदेश के अशोकनगर से एक ऐसी खबर आई है जिसने शाकाहारी समुदाय में तूफान ला दिया है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया है। इसके तहत आलू और टमाटर की खेती में अब जानवरों की चर्बी और मांस से बने प्रोटीन हाइड्रोलाइज़ेट के उपयोग को मंजूरी दे दी गई है। इस फैसले के खिलाफ शाकाहारी संगठनों ने सरकार के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है।
मिशन जीवनमित्र के अध्यक्ष एनके जीवमित्र ने इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर अपना विरोध दर्ज कराया है। उन्होंने इस फैसले को शाकाहारी समाज के साथ सीधा अन्याय बताया है। उनकी मांग है कि सरकार को इस आदेश को तुरंत वापस लेना चाहिए। इसके बिना शाकाहारी लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच रही है।
गजट नोटिफिकेशन में आईटम नंबर 26 और 30 में विवादित प्रावधान शामिल हैं। आईटम 26 में आलू की खेती के लिए मछलियों के मांस और खाल से बने प्रोटीन हाइड्रोलाइज़ेट के इस्तेमाल की सिफारिश की गई है। वहीं आईटम 30 में टमाटर की फसल के लिए गौवंशीय पशुओं के मांस और चमड़े से बने प्रोटीन हाइड्रोलाइज़ेट के उपयोग का सुझाव दिया गया है।
इस फैसले ने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है। अब आलू और टमाटर जैसी सब्जियां, जिन्हें पूरी तरह शाकाहारी माना जाता था, क्या मांसाहारी श्रेणी में आ जाएंगी? शाकाहारी समाज इन सब्जियों को पवित्र मानता आया है। उनका तर्क है कि पशु आधारित तत्वों के इस्तेमाल से इनकी प्रकृति बदल जाएगी।
विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि यह फैसला उपभोक्ताओं को उनकी पसंद के बारे में बताने के अधिकार से वंचित करता है। अगर इन फसलों के उत्पादन में पशु उत्पाद इस्तेमाल होते हैं, तो पैकेजिंग पर इसकी स्पष्ट जानकारी दी जानी चाहिए। इससे लोग अपने लिए सही चुनाव कर सकेंगे।
कृषि मंत्रालय ने इस संशोधन को उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 में किए गए बदलावों के तहत सही ठहराया है। सरकार का मानना है कि इससे किसानों को बेहतर उपज पाने में मदद मिलेगी। हालांकि, इस बात पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि क्या इससे उगाई गई सब्जियों को शाकाहारी घोषित किया जा सकता है।
सोशल मीडिया पर यह मुद्दा तेजी से ट्रेंड कर रहा है। बहुत से लोग सरकार के इस कदम का जमकर विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह भारत के शाकाहारी बहुल समाज की भावनाओं के खिलाफ है। कई लोगों ने इसकी जानकारी न होने पर चिंता जताई है।
इस विवाद ने एक बड़े सामाजिक और नैतिक डिबेट को जन्म दे दिया है। यह बहस अब कृषि नीतियों और धार्मिक भावनाएँके बीच टकराव के स्तर तक पहुंच गई है। सरकार के सामने अब एक बड़ी चुनौती है कि वह किसानों के हित और शाकाहारी समुदाय की भावनाओं के बीच संतुलन कैसे बनाएगी।
