Uttar Pradesh News: बहराइच की एक अदालत ने दुर्गा प्रतिमा विसर्जन जुलूस पर हुए हमले और राम गोपाल मिश्रा की हत्या के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अदालत ने मुख्य आरोपी सरफराज उर्फ रिंकू को फांसी की सजा सुनाई है। इसके अलावा 9 अन्य दोषियों को उम्रकैद की सजा दी गई है। यह UP News पूरे देश में सुर्खियों में है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश पवन कुमार शर्मा ने अपने फैसले में मनुस्मृति के श्लोक का जिक्र करते हुए अपराध को समाज की नींव हिलाने वाला बताया।
इन दोषियों को मिली उम्रकैद
कोर्ट ने राम गोपाल मिश्रा को गोली मारने वाले सरफराज को मृत्युदंड दिया है। वहीं, सरफराज के पिता अब्दुल हमीद और उसके भाई फहीम व तालिब उर्फ सबलू को उम्रकैद की सजा मिली है। इसके साथ ही सैफ, जावेद, जीशान, ननकाउ, शोएब और मरुफ को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। जज ने स्पष्ट किया कि राम गोपाल के साथ की गई क्रूरता क्षमा योग्य नहीं है।
जज ने क्यों किया मनुस्मृति का जिक्र?
न्यायाधीश पवन कुमार शर्मा ने 142 पन्नों के अपने आदेश में मनुस्मृति के अध्याय 7 के श्लोक-14 का उल्लेख किया। उन्होंने लिखा, “दंड शास्ति प्रजा: सर्वा दंड एवाभिरक्षित।” इसका अर्थ है कि दंड ही प्रजा पर शासन करता है और उसकी रक्षा करता है। जब सब सो रहे होते हैं, तब दंड जागता है। जज ने कहा कि ऐसे ‘शैतानों’ के लिए कठोर दंड जरूरी है ताकि समाज में न्याय के प्रति विश्वास बना रहे। यह UP News न्याय व्यवस्था की सख्ती को दर्शाती है।

क्रूरता की हदें पार कर दी थीं
राम गोपाल मिश्रा की हत्या बेहद बर्बर तरीके से की गई थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट और गवाहों के अनुसार, उसे गोलियों से छलनी किया गया और उसके शरीर को जलाने की कोशिश की गई। नाखूनों को उखाड़ने जैसी दरिंदगी भी सामने आई थी। कोर्ट ने माना कि यह केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं थी, बल्कि यह समाज में आस्था और शांति की हत्या थी।
संविधान और कानून के तहत फैसला
फैसले में मनुस्मृति के श्लोक पर सोशल मीडिया में कुछ बहस भी छिड़ी। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सजा का आधार भारतीय संविधान और कानून है। श्लोक का उपयोग केवल ‘राजधर्म’ और दंड के महत्व को नैतिक रूप से समझाने के लिए किया गया था। कोर्ट ने 12 गवाहों, फॉरेंसिक सबूतों और मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर यह फैसला दिया है। यह UP News बताती है कि लोकतंत्र में ‘रूल ऑफ लॉ’ सबसे ऊपर है।
