India News: देश में गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियां चंदे की रेस में पीछे नहीं हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में इनकी आय 223% बढ़ी। कुल 2764 पार्टियों में से 73.26% ने अपने वित्तीय रिकॉर्ड सार्वजनिक नहीं किए। केवल 744 पार्टियों ने जानकारी दी। गुजरात की पार्टियों ने 2316 करोड़ रुपये जुटाए। उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार में सबसे अधिक पार्टियों ने वित्तीय ब्योरा साझा किया।
गुजरात में चंदे का रिकॉर्ड
गुजरात में 95 गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियां हैं, जिनमें से 59 ने वित्तीय जानकारी साझा नहीं की। फिर भी, पांच पार्टियों ने 2019-24 में 2316 करोड़ रुपये का चंदा जुटाया। इन्होंने दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव में केवल 17 उम्मीदवार उतारे, जिन्हें 22,000 वोट मिले। कोई भी उम्मीदवार नहीं जीता। यह आंकड़ा पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठाता है। लोग राजनीतिक फंडिंग में स्पष्टता की मांग कर रहे हैं।
वित्तीय पारदर्शिता की कमी
कुल 2764 पार्टियों में से 2025 ने अपने वित्तीय रिकॉर्ड साझा नहीं किए। उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और दिल्ली में सबसे अधिक पार्टियां गैर-पारदर्शी रहीं। केवल 26.74% पार्टियों ने आय का ब्योरा दिया। बिहार में 36.41% पार्टियों ने जानकारी साझा की, जो राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। यह स्थिति राजनीतिक फंडिंग में जवाबदेही की कमी को उजागर करती है। लोग पार्टियों से खुलापन चाहते हैं।
नियम और सीमाएं
गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियां को मान्यता प्राप्त दलों जैसी सुविधाएं नहीं मिलतीं। इन्हें आरक्षित चुनाव चिह्न, मुफ्त मतदाता सूची, आकाशवाणी या दूरदर्शन पर प्रसारण और रियायती भूमि आवंटन नहीं मिलता। ये कॉर्पोरेट और व्यक्तिगत चंदे पर निर्भर हैं। विदेशी फंडिंग की अनुमति नहीं है। आयकर अधिनियम 1961 की धारा 13ए के तहत समय पर रिटर्न दाखिल करने पर इन्हें कर छूट मिलती है।
