United Nations News: संयुक्त राष्ट्र के मंच पर भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर एस जयशंकर और तुर्किए के प्रतिनिधि के बीच तीखा वाकयुद्ध हुआ। यह घटना संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और भारत की स्थायी सदस्यता की मांग को लेकर हुई। तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तईप एर्दोआन ने अपने भाषण में कश्मीर का मुद्दा उठाया था। इसके जवाब में डॉक्टर जयशंकर ने स्पष्ट और मजबूत शब्दों में जवाब दिया।
डॉक्टर जयशंकर ने तुर्किए की घरेलू स्थितियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने महिला अधिकारों और ऐतिहासिक मुद्दों का जिक्र किया। इस कूटनीतिक जवाब ने वार्ता की दिशा बदल दी। भारतीय विदेश मंत्री ने दो दिनों में 12 देशों के विदेश मंत्रियों के साथ बैठकें कीं। इन बैठकों का उद्देश्य भारत के लिए समर्थन जुटाना था।
संयुक्त राष्ट्र सुधार पर बहस
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सुरक्षा परिषद में सुधार की वकालत की। उन्होंने कहा कि 1945 की व्यवस्था अब पुरानी हो चुकी है। वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए बदलाव जरूरी है। इस बयान ने भारत की स्थायी सदस्यता की मांग को नई ऊर्जा दी। भारत लंबे समय से इस सुधार की मांग करता आया है।
तुर्किए के राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का हवाला देते हुए कश्मीर का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मुद्दे का समाधान इन प्रस्तावों के आधार पर होना चाहिए। इस बयान ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल को चौंका दिया। भारत ने हमेशा कश्मीर को अपना आंतरिक मामला बताया है। तुर्किए का यह कदम भारत के लिए चुनौतीपूर्ण था।
जयशंकर का ऐतिहासिक जवाब
डॉक्टर जयशंकर ने अपने जवाब में तुर्किए के इतिहास पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने अर्मेनियाई और ग्रीक ईसाई समुदायों के साथ हुए ऐतिहासिक व्यवहार का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि दूसरों पर उंगली उठाने से पहले तुर्किए को अपने इतिहास पर विचार करना चाहिए। यह जवाब कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
भारतीय विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया कि प्रत्येक देश का काम अपने घरेलू मुद्दों को हल करना है। दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत कश्मीर सहित अपने सभी मामलों को स्वयं हल करने में सक्षम है। इस बयान ने भारत की स्थिति स्पष्ट कर दी।
अंतरराष्ट्रीय समर्थन की रणनीति
डॉक्टर जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान गहन कूटनीतिक प्रयास किए। उन्होंने कई देशों के विदेश मंत्रियों के साथ द्विपक्षीय बैठकें की। इन बैठकों में संयुक्त राष्ट्र सुधार और आपसी हितों के मुद्दे शामिल थे। भारत ने अपनी स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन जुटाने पर जोर दिया।
इस पूरी घटना ने भारत की बढ़ती कूटनीतिक क्षमता को उजागर किया। डॉक्टर जयशंकर के जवाब को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह किसी भी प्रकार के अनुचित हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा। यह घटना भारत की विदेश नीति की दृढ़ता को दर्शाती है।
