शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

अनोखी परंपरा: हिमाचल के इस गांव में सैकड़ों साल से नहीं मनाई जाती दिवाली; जानें क्यों

Share

Himachal News: दिवाली का त्योहार पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले का सम्मू गांव इससे अछूता है। सैकड़ों सालों से यहां दिवाली नहीं मनाई जाती। न ही इस दिन घरों में कोई पकवान बनता है। गांव वाले इस परंपरा का पालन अब भी करते हैं।

गांव के लोगों की मान्यता है कि दिवाली पर पटाखे जलाने या पकवान बनाने से आपदा आती है। उनका विश्वास है कि ऐसा करने पर गांव में किसी की अकाल मृत्यु हो जाती है। इस डर के कारण लोग दिवाली के दिन घरों से बाहर निकलने से भी कतराते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

क्या है इस परंपरा की कहानी

लोक मान्यता के अनुसार राजाओं के समय की बात है। गांव की एक महिला दिवाली मनाने अपने मायके जा रही थी। उसका पति एक सैनिक था। रास्ते में उसे अपने पति का शव मिला। ड्यूटी के दौरान उसकी मृत्यु हो गई थी। गर्भवती पत्नी यह सदमा सहन नहीं कर पाई।

यह भी पढ़ें:  रोहतांग दर्रा: बिना बर्फ और छुट्टियों के भी ट्रैफिक जाम का वीडियो वायरल, सैलानियों का सैलाब

महिला ने अपने पति के साथ सती होने का निर्णय लिया। सती होने से पहले उसने पूरे गांव को श्राप दिया। उसने कहा कि गांव के लोग कभी दिवाली नहीं मना पाएंगे। उस दिन के बाद से गांव में दिवाली का त्योहार नहीं मनाया जाता। लोग सिर्फ सती की मूर्ति की पूजा करते हैं।

ग्रामीणों के अनुभव

ग्राम पंचायत भोरंज की प्रधान पूजा देवी बताती हैं कि उन्होंने कभी गांव में दिवाली नहीं देखी। शादी के बाद से ही वह इस परंपरा का हिस्सा हैं। उनका कहना है कि गांव से बाहर बसे लोग भी इस श्राप से मुक्त नहीं हैं। एक परिवार ने बाहर जाकर दिवाली मनाने की कोशिश की थी।

उस परिवार ने दिवाली के पकवान बनाने शुरू किए। तभी अचानक उनके घर में आग लग गई। इस घटना ने गांव वालों के विश्वास को और मजबूत कर दिया। अब कोई भी दिवाली मनाने का जोखिम नहीं उठाता। सभी लोग सती की पूजा करने तक ही सीमित रहते हैं।

यह भी पढ़ें:  हिमाचल प्रदेश: किरतपुर-मनाली फोरलेन पर बस-कार टक्कर, युवा वकील अंकुश वालिया की हुई मौत

मुक्ति के प्रयास

गांव वाले इस श्राप से मुक्ति पाना चाहते थे। उन्होंने कई बार हवन और यज्ञ करवाए। तीन साल पहले एक बड़े यज्ञ का आयोजन भी किया गया। लेकिन सभी प्रयास विफल रहे। यज्ञ के बाद कुछ लोगों ने दिवाली मनाने की कोशिश की थी। उनके घर में भी आग लग गई।

इस घटना के बाद सभी ने दिवाली मनाने की कोशिशें बंद कर दीं। गांव के युवा भी इस परंपरा का पालन करते हैं। उनका कहना है कि दिवाली मनाने पर गांव में किसी न किसी की मौत हो ही जाती है। इसलिए वे इस रिवाज को निभा रहे हैं।

गांव की यह अनोखी परंपरा आज भी कायम है। दिवाली के दिन पूरा गांव शांत और अंधेरा रहता है। कोई दीया नहीं जलता। कोई पटाखा नहीं फूटता। लोग अपने घरों में ही रहते हैं। यह दृश्य पूरे देश में चल रही दिवाली की रौनक के बिल्कुल विपरीत है।

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

Read more

Related News