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गुरूवार, 21 सितम्बर,2023

पत्नी और बेटों को देने के लिए पैसा न होने की उमर की दलील खारिज, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिपण्णी: बच्चे के बालिग होने से एक पिता मुक्त नहीं हो जाता

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Delhi News: अदालत को दुख है कि ऐसी कटु कार्यवाही में माता-पिता अपने बच्चों को अपना मोहरे बना लेते हैं और इस प्रकार अपनी बात साबित करने के लिए अपने बच्चों की खुशियों को खुद दरकिनार कर देते हैं। दिल्ली हाई कोर्ट की जुबां से यह दर्द जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनकी पत्नी पायल अब्दुल्ला के बीच वैवाहिक विवाद पर झलका, जिसमें अंतरिम गुजाराभत्ते के मुद्दे पर हाई कोर्ट ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया है।

कोर्ट ने पायल और उनके दो बेटों की अपील मंजूर करते हुए मासिक खर्चे की रकम बढ़ा दिया और राजनेता को आदेश दिया कि वह पत्नी को भरण पोषण के लिए हर महीने डेढ़ लाख रुपये और दोनों बेटों को उनकी पढ़ाई के लिए 60-60 हजार रुपये, जो 2016 से उनसे अलग रह रहे हैं। हाई कोर्ट ने निचली परिवार अदालत को निर्देश दिया कि वह तलाक के लिए दायर 2016 में दायर उमर के आवेदन को 12 महीनों के भीतर निपटा दे।

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पत्नी और बेटों को देने के लिए पैसा न होने की उमर की दलील खारिज

अपनी आय और वित्तीय स्थितियों को लेकर उमर के दावों से हाई कोर्ट असहमत नजर आया। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने फैसले में कहा, रिकॉर्ड को देखने से ही पता चलता है कि प्रतिवादी साधन संपन्न व्यक्ति है और उसे वित्तीय विशेषाधिकार प्राप्त है, जो उसे आम आदमी मानने से रोकते हैं।

हालाँकि यह समझ में आता है कि एक राजनेता होने के नाते, वित्तीय संपत्तियों से संबंधित सभी जानकारी का खुलासा करना खतरनाक हो सकता है, पर हालाँकि, इसमें रत्ती भर भी संदेह नहीं है कि प्रतिवादी के पास अपनी पत्नी और बच्चों के भरण-पोषण के लिए संसाधन हैं।

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‘बच्चे के बालिग होने से एक पिता मुक्त नहीं हो जाता’

बेटों के बालिग होने के मुद्दे से जुड़ी उमर की दलील भी हाई कोर्ट पर कोई असर नहीं की। जस्टिस प्रसाद ने कहा, इस पहलू पर सुप्रीम कोर्ट और तमाम हाई कोर्ट का मानना यही है कि बेटे का बालिग होने से एक पिता अपने बच्चे के भरण- पोषण और यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाता कि उन्हें अच्छी शिक्षा मिले।

याचिकाकर्ताओं की इस दलील को कोर्ट ने मंजूर कर लिया कि सीआरपीसी की धारा 125 की जो भाषा है, वो अपने बेटे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी से एक पिता को बाहर नहीं करती। हाई कोर्ट ने कहा कि उक्त प्रावधान के उद्देश्य और मंशा को ध्यान में रखते हुए, साथ ही नौकरी पाने के लिए उच्च शिक्षा हासिल करने की बढ़ती अहमियत को देखते हुए, एक पिता कानूनी और नैतिक रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि उसके बच्चों को भी इसका समान अवसर मिले, भले ही वो बालिग हो चुके हों।

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पायल अब्दुल्ला की अपील पर सुनाया फैसला

हाई कोर्ट ने यह फैसला पायल अब्दुल्ला की अपील पर सुनाया, जिन्होंने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए गुजारा भत्ते की रकम बढ़ाने का अनुरोध किया था। 26 अप्रैल 2018 को ट्रायल कोर्ट ने पायल अब्दुल्ला को 75 हजार रुपये और उनके बेटे को पढ़ाई के लिए 19 साल की उम्र तक 25 हजार रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया था। पायल ने फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में तर्क दिया कि यह रकम काफी कम है और दोनों बच्चों के भरण पोषण और पढ़ाई का खर्चा बहुत ज्यादा।

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