Sanatan Dharma Row: तमिलनाडु सरकार में मंत्री उदयनिधि ने मायावती के सन 1990 और 2000 के दशक के फॉर्मूले को अपने राज्य की सियासी जमीन पर बिछा दिया है, जिस लाइन पर चलकर पर कभी मायावती खुद को दलितों का सबसे बड़ा नेता बताने लगी थीं।
सियासी जानकारों का कहना है कि जातिगत समीकरणों की लड़ाई भले तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में अलग हो, लेकिन वर्तमान फॉर्मूला कमोबेश वही है जो कभी मायावती का हुआ करता था।
दरअसल, सनातन धर्म पर विवादित बयान देकर स्टालिन ने भले ही विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA को मुसीबत में डाल दिया लेकिन अपने राज्य में पार्टी के विस्तार और जनाधार को बहुत मजबूत करने का बड़ा सियासी दांव चल दिया है। सियासी जानकारों का मानना है कि इस बात को “छोटे स्टालिन” अच्छी तरीके से समझते हैं तभी तो वह भारी जनसभा में यह कहने से नहीं बचते कि वह किसके पोते हैं।
INDIA गठबंधन के प्रमुख सहयोगी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की पार्टी डीएमके की वजह से सहयोगी गठबंधन के सियासी मुसीबत में पड़ने जैसा हो गया है। राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार तरुण अहलावत कहते हैं कि तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन के हालिया बयान को सुनकर सीधे तौर पर कहा यही जा रहा है कि उनके लिए इंडिया गठबंधन प्राथमिकता में नहीं है।
तरुण कहते हैं कि जब गठबंधन की नींव रखी गई और मुंबई में हुई तीसरी बैठक के बाद यह भी हुआ था कि सभी राजनीतिक पार्टियों एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (न्यूनतम साझा कार्यक्रम) के तहत अपने एजेंडे और मुद्दे को आगे रखेंगे। सियासी जानकारों का मानना है कि जब अलग-अलग विचारधाराओं और अलग-अलग मुद्दों की राजनीति करने वाले एकजुट होते हैं तो उसमें सबसे महत्वपूर्ण समझौता कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत ही किया जाता है।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक तरुण का कहना है कि अभी पूरी तरीके से विपक्षी दलों के गठबंधन का न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय नहीं हुआ है। लेकिन एक आपसी समझ के चलते यह बात सामान्य तौर पर सभी राजनीतिक दलों के लिए लागू होती है कि कोई ऐसा विवादित बयान न दिया जाए। लेकिन जिस तरह उदयनिधि ने बयान दिया वह बताता है कि उनके लिए गठबंधन और अपनी सियासत में प्राथमिकता क्या है।
वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेंद्र शुक्ला कहते हैं कि मायावती ने तो 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से बनी सरकार के बाद अपने सियासी फार्मूले को बदल दिया। हालांकि उसे फार्मूले के बाद मायावती की सियासत में वह मजबूत स्थिति दोबारा नहीं बन सकी जो 2007 से 2012 तक उत्तर प्रदेश में सरकार के दौरान रही थी।
शुक्ला कहते हैं कि तमिलनाडु की सियासत में भी डीएमके की सियासी हैसियत हिंदी, हिंदू, संस्कृत और देवी देवताओं के अस्तित्व पर सवालिया निशान उठाने के साथ ही आगे बढ़ती रही है। उनका कहना है कि वैसे तो तमिलनाडु में एम करुणानिधि की सियासत बहुजन समाज पार्टी की सियासत से बहुत पहले की अपनी एक विशेष लाइन पर ही चलती रही है। लेकिन जिस तरह से एम करुणानिधि के पोते और राज्य सरकार के मंत्री उदयनिधि हार्ड लाइन के साथ आगे बढ़ रहे हैं वह साबित करता है कि उन्होंने मायावती के उसी फार्मूले को अपनाया है जो कभी 90 और 2000 के दशक में बहुजन समाज पार्टी अपनाती थी।
तमिलनाडु सरकार में मंत्री और वहां के मुख्यमंत्री के बेटे उदयनिधि की ओर से सनातन धर्म पर दिए जाने वाले बयान और फिर उस पर कायम रहने वाले अपने स्टैंड के भी सियासी मायने तो तलाशी ही जाने लगे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि गठबंधन के प्रमुख घटक दल कांग्रेस की ओर से इस बयान से पल्ला झाड़ने के बाद भी स्टालिन अपनी बात को लगातार आगे रख रहे हैं। इससे सियासी गलियारों में चर्चा हो रही है कि क्या INDIA गठबंधन में कोई बड़ी सियासी फूट पड़ने जा रही है।
राजनीतिक विश्लेषक ओपी तंवर कहते हैं कि जिस तरीके से तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन अपने बयान पर कायम में उससे अंदाजा तो यही लग रहा है कि वह गठबंधन की बजाय है अपने राज्य की सियासत में भविष्य की राजनीति सेट कर रहे हैं। तंवर का कहना है कि किसी भी सियासी दल के लिए गठबंधन में शामिल होने पर बयान और फैसले नीति निर्धारण के तहत ही करने पड़ते हैं। जो गठबंधन का एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम होता है। चूंकि स्टालिन के मामले में इस तरीके की समझदारी फिलहाल बयानों से नहीं झलकी है। इसलिए यह कयास तो लगाए ही जाएंगे कि कहीं ऐसा तो नहीं की गठबंधन में बड़ी फूट पड़ने वाली है।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि अपनी पार्टी की हिंदू हिंदी संस्कृत और देवी देवताओं को न मानने वाली राजनीतिक विचारधारा को इतना मजबूती के साथ आगे बढ़ा रहे थे कि उनको इसमें हमेशा सियासी फायदा ही नजर आता था। सेंटर फॉर जियोपोलिटिकल स्टडीज एंड रिसर्च के प्रोफेसर स्वामी कहते हैं कि एक बार तो सियासत में एम करुणानिधि ने भगवान राम पर ही सवाल उठाते हुए एक जनसभा में पूछ लिया था कि रामसेतु का निर्माण आखिर राम कैसे कर सकते थे। उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए पूछा था कि क्या राम कोई इंजीनियर थे। वह भगवान राम के अस्तित्व पर भी सवाल उठा चुके थे।
प्रोफेसर स्वामी कहते हैं कि साठ के आखिरी के दशक में करुणानिधि ने हिंदी का इस कदर तमिलनाडु में विरोध किया कि कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। तमिलनाडु में हालात इस कदर एम करुणानिधि के पक्ष में आए कि सरकारी स्कूलों से लेकर बैंक अस्पताल और सरकारी दफ्तर तक में हिंदी पूरी तरीके से प्रतिबंधित हो चुकी थी। करुणानिधि की तब राज्य में हिंदू हिंदी और देवी देवताओं के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगाने से राज्य में उनकी इतनी स्वीकार्यता बढ़ी कि 3 फरवरी 1969 को मुख्यमंत्री अन्नादुरई के निधन के बाद वह पार्टी के नेता बनाए गए और बाद में मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ली।