Two Nations Theory: वीर सावरकर के द्विराष्ट्र सिद्धांत को लेकर इतिहासकारों और राजनेताओं में गहरे मतभेद हैं। कुछ विद्वानों का दावा है कि मोहम्मद अली जिन्ना से तीन साल पहले ही सावरकर ने इस सिद्धांत का समर्थन किया था। वहीं दूसरी ओर कुछ लोग मानते हैं कि सावरकर के बयानों को संदर्भ से बाहर निकालकर गलत प्रस्तुत किया गया है।
सावरकर ने 1937 में हिंदू महासभा के अध्यक्षीय भाषण में कहा था कि भारत में मुख्य रूप से दो राष्ट्र हैं – हिंदू और मुसलमान। यह बयान मुस्लिम लीग द्वारा 1940 में पाकिस्तान प्रस्ताव पारित करने से तीन साल पहले आया था। इसी आधार पर कई विद्वान सावरकर को द्विराष्ट्र सिद्धांत का प्रारंभिक समर्थक मानते हैं।
इतिहासकारों के विभिन्न मत
इतिहासकार राम पुनियानी और कांग्रेस नेता शशि थरूर ने सावरकर के बयानों को द्विराष्ट्र सिद्धांत का समर्थन बताया है। उनका मानना है कि सावरकर इस सिद्धांत के प्रारंभिक प्रवक्ताओं में से थे। इसके विपरीत कुछ इतिहासकारों का तर्क है कि सावरकर के बयानों को गलत संदर्भ में प्रस्तुत किया जा रहा है।
सावरकर के समर्थक इस बात पर जोर देते हैं कि उनका लक्ष्य भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना था न कि देश का विभाजन करना। विद्वान विक्रम संपत जैसे इतिहासकारों का मानना है कि सावरकर ने दो राष्ट्रों की बात केवल तब तक की थी जब तक मुसलमानों की निष्ठा भारत के बजाय उम्मा के प्रति बनी हुई थी।
विरोधी व्याख्या और तर्क
सावरकर के समर्थकों का मानना है कि उनके बयानों की गलत व्याख्या की गई है। उनके अनुसार सावरकर का मुख्य उद्देश्य भारत को एक सशक्त हिंदू राष्ट्र के रूप में विकसित करना था। विभाजन उनकी मंशा नहीं थी बल्कि वे हिंदुओं के राजनीतिक अधिकारों के पक्षधर थे।
विक्रम संपत के अनुसार सावरकर का मानना था कि जिस दिन मुसलमान भारत के प्रति पूर्ण निष्ठा दिखाएंगे उस दिन यह अलगाव स्वतः समाप्त हो जाएगा। इस प्रकार उनका दृष्टिकोण सशर्त था और उन्होंने स्थायी रूप से दो राष्ट्रों की अवधारणा को नहीं स्वीकारा था।
डॉक्टर अंबेडकर का दृष्टिकोण
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने सावरकर और जिन्ना के विचारों में समानता देखी थी। उन्होंने कहा था कि दोनों नेता भारत में दो राष्ट्रों के अस्तित्व को स्वीकार करते थे। अंबेडकर के अनुसार दोनों केवल उन शर्तों पर असहमत थे जिन पर इन राष्ट्रों को एक साथ रहना चाहिए।
अंबेडकर ने अपने लेखन में इस बात पर प्रकाश डाला था कि सावरकर और जिन्ना दोनों ही हिंदू और मुसलमानों को अलग-अलग राष्ट्र मानते थे। हालांकि उनके समाधान के तरीकों में अंतर था। यह ऐतिहासिक दृष्टिकोण इस विवाद को और गहरा बनाता है।
वर्तमान राजनीतिक संदर्भ
सावरकर के द्विराष्ट्र सिद्धांत पर चल रही बहस आज भी प्रासंगिक बनी हुई है। विभिन्न राजनीतिक दल इस मुद्दे को अलग-अलग ढंग से उठाते रहते हैं। कुछ लोग सावरकर को हिंदू राष्ट्रवाद का प्रणेता मानते हैं तो कुछ उन्हें धर्मनिरपेक्षता के विरोधी के रूप में देखते हैं।
इतिहास के इस पहलू पर अकादमिक और राजनीतिक बहस जारी है। विद्वानों के बीच सावरकर के वास्तविक इरादों और बयानों की मूल भावना को लेकर मतभेद बना हुआ है। यह विवाद भारतीय इतिहास की जटिलताओं को उजागर करता है।
