India News: आज की डिजिटल दुनिया में इंटरनेट और स्मार्टफोन आम बात है। लेकिन 1980 के दशक में भारत की तस्वीर बिल्कुल अलग थी। क्या आप जानते हैं कि उस समय घर में टीवी या रेडियो रखने के लिए सरकारी लाइसेंस जरूरी था? जी हां, यह बिल्कुल सच है। उस दौर में टीवी देखना मुफ्त मनोरंजन नहीं था। इसके लिए लोगों को बकायदा टैक्स चुकाना पड़ता था। बिना लाइसेंस के टीवी रखना गैर-कानूनी अपराध माना जाता था।
पोस्ट ऑफिस से बनता था लाइसेंस
आज हम टीवी खरीदकर सीधा घर ले आते हैं। लेकिन 45 साल पहले टीवी खरीदने के बाद सबसे पहले पोस्ट ऑफिस जाना पड़ता था। वहां से एक लाइसेंस बुकलेट बनवानी पड़ती थी। यह बिल्कुल बैंक पासबुक जैसी दिखती थी। यह लाइसेंस केवल एक साल के लिए मान्य होता था। हर साल के अंत में इसे रिन्यू करवाना जरूरी था। इसके लिए लोग पोस्ट ऑफिस में लाइन लगाकर 100 रुपये फीस भरते थे। उस समय 100 रुपये बहुत बड़ी रकम मानी जाती थी। सबूत के तौर पर पासबुक में डाक टिकट चिपकाए जाते थे।
पड़ोसियों के लिए सिनेमा हॉल था घर
उस दौर में India News और मनोरंजन के साधन सीमित थे। पूरे मोहल्ले में केवल एक या दो घरों में ही टेलीविजन होता था। जिस घर की छत पर एंटीना दिखता, उसे अमीर माना जाता था। रामायण, महाभारत या चित्रहार के समय पूरा मोहल्ला एक ही घर में जुट जाता था। लोग फर्श पर बैठकर शांति से टीवी देखते थे। उस समय टीवी लकड़ी के बक्से में शटर के साथ आता था। शो खत्म होते ही उसे किसी खजाने की तरह बंद कर दिया जाता था।
इंस्पेक्टर के छापे का डर
टीवी मालिकों में हमेशा ‘लाइसेंस इंस्पेक्टर’ का खौफ रहता था। ये इंस्पेक्टर बिजली विभाग के चेकर की तरह होते थे। वे कभी भी किसी के घर औचक निरीक्षण के लिए आ सकते थे। अगर किसी के घर बिना वैलिड लाइसेंस के टीवी चलता मिलता, तो भारी जुर्माना लगता था। कई बार तो टीवी भी जब्त कर लिया जाता था। इसलिए लोग रिन्यूअल की तारीख कभी नहीं भूलते थे। 1990 के दशक में उदारीकरण के बाद सरकार ने यह नियम खत्म कर दिया।
