National News: सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के कुछ अधिकारियों पर कड़ी फटकार लगाई है। शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन के अधिकारी विमल नेगी की मौत की जांच कर रहे सीबीआई अधिकारियों को ‘पूरी तरह फर्जी’ बताया। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्ला और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने यह टिप्पणी देशराज की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान की।
जांच पद्धति पर उठाए सवाल
पीठ ने सीबीआई की जांच पद्धति पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने पूछा कि जांचकर्ता कौन है जो इस तरह के बचकाने सवाल पूछ रहा है। पीठ ने कहा कि अगर वह वरिष्ठ अधिकारी है तो यह सीबीआई की छवि को बहुत खराब करता है। अदालत ने जांच के तरीके को लेकर गहरी नाराजगी जताई।
चुप रहने के अधिकार का जिक्र
शीर्ष अदालत ने कहा कि चुप रहना एक संवैधानिक अधिकार है। सीबीआई का यह कहना कि आरोपी ने सहयोग नहीं किया, गलत है। अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर कोई आरोपी आरोपों से इनकार करता है तो इसे असहयोग नहीं माना जा सकता। यह उसका कानूनी अधिकार है।
जांच रिपोर्ट को बताया बेकार
पीठ ने सीबीआई की जांच रिपोर्ट को बेकार बताया। अदालत ने कहा कि इस तरह के दस्तावेज से कुछ नहीं निकलता। सब कुछ अनुमानों पर आधारित है। कोई ठोस सबूत नहीं दिख रहा है जो आरोपियों के खिलाफ जाता हो। अदालत ने जांच की गुणवत्ता पर गहरी चिंता जताई।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला हिमाचल प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन के अधिकारी विमल नेगी की मौत से जुड़ा है। परिवार ने आरोप लगाया कि कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक हरिकेश मीणा और देशराज समेत तीन लोगों ने नेगी पर गलत काम करने का दबाव डाला। इसके कारण नेगी अत्यधिक तनाव में आ गए और उन्होंने आत्महत्या कर ली।
देशराज को मिली अग्रिम जमानत
सुप्रीम कोर्ट ने देशराज को अग्रिम जमानत देने का फैसला सुनाया। अदालत ने सीबीआई के रुख पर सवाल उठाते हुए यह राहत दी। सीबीआई ने जमानत का विरोध करते हुए दावा किया था कि आरोपी ने जांच में सहयोग नहीं किया। लेकिन अदालत ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया।
सीबीआई अधिकारियों पर तीखी टिप्पणी
पीठ ने सीबीआई अधिकारियों के बारे में कहा कि वे सेवा में रहने लायक नहीं हैं। अदालत ने जांच के तरीके को लेकर गंभीर आपत्ति जताई। शीर्ष अदालत ने सीबीआई की कार्यप्रणाली में सुधार की जरूरत पर जोर दिया। यह मामला संस्था की विश्वसनीयता से जुड़ा हुआ है।
