Himachal News: हिमाचल प्रदेश में वन भूमि पर अवैध कब्जे का मामला एक नए मोड़ पर पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस संवेदनशील मुद्दे पर बड़ा फैसला लिया है। अब अतिक्रमण से जुड़े मामलों की सुनवाई एक ‘लार्जर बेंच’ (बड़ी पीठ) करेगी। प्रदेश में करीब सवा लाख वन भूमि पर अवैध कब्जे बताए जा रहे हैं। हाईकोर्ट ने इन्हें हटाने का आदेश दिया था। हालांकि, फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने मामले में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है।
क्यों लिया गया यह फैसला?
सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग बेंच ने अतिक्रमण के मामलों पर अलग-अलग फैसले दिए थे। इससे कानूनी असमंजस की स्थिति पैदा हो गई थी। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने 18 दिसंबर 2025 को यह निर्णय लिया। उन्होंने पुराने आदेशों में विरोधाभास को देखते हुए मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने का आदेश दिया। अब भारत के मुख्य न्यायाधीश इस मुद्दे पर फैसला करने के लिए एक बड़ी बेंच का गठन करेंगे।
बेंच के सामने आया विरोधाभास
हिमाचल सरकार के वकील ने 18 दिसंबर को सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण तथ्य रखे। उन्होंने बताया कि 27 फरवरी 2025 को समान मुद्दों वाली याचिकाओं पर अलग-अलग आदेश आए थे। एक ही दिन अलग-अलग बेंच ने विपरीत नतीजे दिए थे। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने भी इस बात को स्वीकार किया था। उन्होंने माना कि एक ही मुद्दे पर अलग-अलग विचार दिए गए हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्टता के लिए इसे बड़ी बेंच को सौंपना उचित समझा।
फिलहाल यथास्थिति रहेगी कायम
कोर्ट ने सभी पक्षों को अगले आदेश तक ‘यथास्थिति’ (Status Quo) बनाए रखने का निर्देश दिया है। इसका मतलब है कि अभी किसी भी तरह की बेदखली या तोड़फोड़ की कार्रवाई नहीं होगी। राज्य सरकार के वकील ने बताया कि सरकार विवादित संपत्ति के कब्जे में है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि संपत्ति के कब्जे और स्वरूप में कोई बदलाव न किया जाए। अब सबकी निगाहें बड़ी बेंच के फैसले पर टिकी हैं।
