India News: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 के नियम 170 पर लगी रोक हटाने की मांग की। यह नियम आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाता है। सरकार ने शनिवार को याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नियम हटाने के फैसले पर रोक लगाई थी। सरकार का कहना है कि वैकल्पिक कानूनी तंत्र मौजूद हैं।
नियम 170 का क्या है महत्व
नियम 170 आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के विज्ञापनों को नियंत्रित करता है। इसके तहत बिना लाइसेंसिंग प्राधिकारी की मंजूरी के विज्ञापन जारी नहीं हो सकते। केंद्र सरकार ने 2023 में इसे लागू करने पर रोक लगाई थी। बाद में अधिसूचना जारी कर इसे पूरी तरह हटा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को रद्द कर दिया था। अब सरकार ने कोर्ट से रोक हटाने की अपील की है।
सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी और फैसला
पिछले साल इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले पर नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने नियम 170 को हटाने की अधिसूचना रद्द कर दी। जस्टिस हिमा कोहली और संदीप मेहता की बेंच ने आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि यह नियम कानून की किताबों में रहेगा। सरकार ने अब इस आदेश को वापस लेने की मांग की है।
सरकार का तर्क और सलाहकार बोर्ड की सिफारिश
केंद्र ने कहा कि सलाहकार बोर्ड ने नियम 170 हटाने की सिफारिश की थी। सरकार ने 2023 में राज्यों को इसे लागू न करने का निर्देश दिया। बाद में नियम को पूरी तरह हटा दिया गया। सरकार का कहना है कि यह नियम केवल आयुष उद्योग पर लागू होता है। अन्य उद्योगों पर ऐसे प्रतिबंध नहीं हैं। यह असमान व्यवहार है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन करता है।
वैकल्पिक कानूनी तंत्र का दावा
सरकार ने कोर्ट को बताया कि भ्रामक विज्ञापनों पर नियंत्रण के लिए कानून मौजूद हैं। औषधि एवं चमत्कारिक उपचार अधिनियम, 1954 इसे नियंत्रित करता है। आयुष मंत्रालय ने ‘आयुष सुरक्षा पोर्टल’ शुरू किया है। यह भ्रामक विज्ञापनों की निगरानी करता है। उपभोक्ता मामलों का विभाग भी GAMA पोर्टल चलाता है। यह शिकायतों का समाधान करता है। सरकार ने इसे नीतिगत मुद्दा बताया।
नियम 170 की पृष्ठभूमि और उद्देश्य
नियम 170 को 2018 में लागू किया गया था। यह ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स, 1945 का हिस्सा है। इसके तहत आयुष दवाओं के विज्ञापन के लिए लाइसेंसिंग प्राधिकारी की मंजूरी जरूरी है। इसका उद्देश्य भ्रामक दावों को रोकना है। कई हस्तियां ऐसी दवाओं का प्रचार करती हैं। नियम का मकसद उपभोक्ताओं को गलत जानकारी से बचाना है।
हितधारकों की चिंताएं और तर्क
सरकार ने कहा कि हितधारकों ने नियम 170 की वैधता पर सवाल उठाए। उनका कहना है कि यह नियम केवल आयुष उद्योग को निशाना बनाता है। एलोपैथी, न्यूट्रास्यूटिकल्स और कॉस्मेटिक्स उद्योगों पर ऐसी पाबंदी नहीं है। यह असमानता संविधान का उल्लंघन करती है। मशहूर हस्तियों द्वारा विज्ञापन भी इस नियम के दायरे में आते हैं। सरकार ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया।
सुप्रीम कोर्ट का अगला कदम
केंद्र की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई कर सकता है। कोर्ट को सरकार के तर्कों पर विचार करना होगा। नियम 170 को हटाने की अनुमति मिलेगी या नहीं, यह फैसला महत्वपूर्ण होगा। यह आयुष उद्योग और उपभोक्ताओं के हितों को प्रभावित करेगा। कोर्ट का रुख इस मामले में भविष्य की दिशा तय करेगा।
भ्रामक विज्ञापनों पर निगरानी
आयुष मंत्रालय ने भ्रामक विज्ञापनों पर नजर रखने के लिए कदम उठाए हैं। ‘आयुष सुरक्षा पोर्टल’ शिकायतों को दर्ज करता है। उपभोक्ता मामलों का विभाग भी सक्रिय है। GAMA पोर्टल शिकायतों का त्वरित समाधान करता है। सरकार का कहना है कि ये तंत्र प्रभावी हैं। इनके रहते नियम 170 की जरूरत नहीं है।
