Thanjavur News: तमिलनाडु के तंजावुर जिले में छुआछूत की एक घटना ने सामाजिक सद्भाव पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कोल्लंगराई गांव में एक बुजुर्ग महिला ने दलित समुदाय के स्कूली छात्रों को सार्वजनिक रास्ता इस्तेमाल करने से रोक दिया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ है। वीडियो में देखा जा सकता है कि महिला ने बच्चों को डंडे के साथ रोकते हुए उन पर चिल्लाया। इसके बाद पुलिस ने महिला और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
तंजावुर तालुका पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पुष्टि की कि मामला दर्ज किया गया है। अधिकारी के मुताबिक अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है और जांच जारी है। घटना शुक्रवार सुबह की है जब छात्र स्कूल की यूनिफॉर्म पहने और बैग लिए उस रास्ते से गुजर रहे थे। ग्रामीणों ने पहले भी शिकायत की थी कि दलित परिवारों को इस आम रास्ते का उपयोग करने से रोका जाता रहा है।
ग्रामीणों का आरोप है कि उन्हें इस ‘वंडी पथाई’ यानी वाहन मार्ग का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है। इसके चलते उन्हें अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए एक जलाशय के चारों ओर लगभग डेढ़ किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता था। यह लंबा और असुविधाजनक रास्ता था। इस घटना ने ग्रामीण इलाकों में व्याप्त जातिगत भेदभाव की गहरी जड़ों को एक बार फिर उजागर कर दिया है।
वायरल हुए वीडियो ने इस मामले को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया है। वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि कैसे महिला ने नन्हें बच्चों को डराने की कोशिश की। इस घटना ने यह सवाल पैदा किए हैं कि क्या समाज वाकई आधुनिक हो पाया है। यह घटना दर्शाती है कि कानूनी प्रावधानों के बावजूद सामाजिक व्यवहार में बदलाव एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
पुलिस द्वारा त्वरित कार्रवाई कर एफआईआर दर्ज करना एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है। हालांकि गिरफ्तारी न होना सवाल खड़े कर रहा है। अधिकारियों का कहना है कि जांच के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। यह मामला समाज के एक वर्ग द्वारा दलितों के मूल अधिकारों के हनन का उदाहरण है। सार्वजनिक रास्तों का उपयोग करना हर नागरिक का मौलिक अधिकार है।
इस प्रकार की घटनाएं संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का सीधा उल्लंघन हैं। देश भर में ऐसे मामले सामने आते रहे हैं जहां दलितों को सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल करने से रोका जाता है। तंजावुर की यह घटना बताती है कि शिक्षा और कानून के बावजूद मानसिकता में बदलाव नहीं आया है। सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया अभी अधूरी लगती है।
स्थानीय लोगों ने इस घटना पर गहरी नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि ऐसी घटनाएं समाज की प्रगति पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। युवा पीढ़ी के सामने ऐसे उदाहरण भविष्य के लिए चिंताजनक हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। इससे उनके शैक्षणिक विकास में भी बाधा आती है।
गांव के कुछ लोगों का मानना है कि यह कोई अलग घटना नहीं बल्कि एक सतत चलने वाली समस्या है। उनके अनुसार दलित समुदाय के लोगों को अक्सर ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पुलिस की कार्रवाई से उनमें कानून पर विश्वास बढ़ा है। वे उम्मीद करते हैं कि अब ऐसी घटनाओं पर रोक लगेगी और सभी को बराबरी का अधिकार मिलेगा।
इस मामले ने प्रशासनिक स्तर पर भी सक्रियता बढ़ा दी है। जिला प्रशासन ने संबंधित विभागों को इस घटना की जांच के निर्देश दिए हैं। स्थानीय प्रशासन का कहना है कि वह सभी नागरिकों की सुरक्षा और अधिकारों के प्रति प्रतिबद्ध है। ऐसी किसी भी प्रथा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी जो समाज में विभाजन पैदा करती हो।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि केवल कानूनी कार्रवाई ही पर्याप्त नहीं है। उनका कहना है कि समाज के हर वर्ग के बीच जागरूकता फैलाने की जरूरत है। शिक्षा के माध्यम से लोगों की सोच में बदलाव लाना होगा। स्कूलों और कॉलेजों में सामाजिक समरसता के पाठ पढ़ाने होंगे। तभी एक समावेशी समाज का निर्माण संभव हो पाएगा।
यह घटना इस बात का संकेत है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक परिवर्तन की गति धीमी है। शहरीकरण और शिक्षा के प्रसार के बावजूद पुरानी मानसिकता बनी हुई है। इसके लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। सरकार, प्रशासन और समाजसेवी संगठनों को मिलकर काम करना होगा। केवल तभी ऐसी घटनाओं को पूरी तरह से रोका जा सकता है।
मामले की जांच अभी जारी है और पुलिस गवाहों के बयान दर्ज कर रही है। आरोपियों से पूछताछ की जा रही है। पुलिस का कहना है कि जल्द ही सभी पक्षों के बयान ले लिए जाएंगे। तथ्यों की पुष्टि के बाद आगे की कानूनी प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा। स्थानीय लोग न्याय की उम्मीद लगाए हुए हैं।
