Telangana News: तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक महिला की तलाक और 90 लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ते की मांग को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि पति पर नपुंसकता के आरोपों को साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया था। यह मामला दिसंबर 2013 में हुई एक शादी से संबंधित है।
पत्नी के आरोप क्या थे?
पत्नी ने अदालत में आरोप लगाया कि उसके पति ने अपनी मेडिकल स्थिति छुपाकर शादी की थी। उसका कहना था कि शादी के पहले दिन से ही पति शारीरिक संबंध बनाने में असमर्थ थे। यहां तक कि हनीमून के दौरान भी केरल और कश्मीर में कोई शारीरिक संबंध नहीं बन पाया था।
अमेरिका में डॉक्टरों का क्या कहना था?
वर्ष 2015 में अमेरिका जाने के बाद पत्नी ने वहां के डॉक्टरों से संपर्क किया। पत्नी के मुताबिक, अमेरिकी डॉक्टरों ने पति में एक लाइलाज समस्या की पुष्टि की थी। इस वजह से वह मानसिक रूप से टूट गई और परिवार बसाने का उसका सपना अधूरा रह गया।
पति ने क्या जवाब दिया?
पति ने अदालत में कहा कि यह एक प्रेम विवाह था और भारत तथा अमेरिका दोनों जगह उनका वैवाहिक जीवन सामान्य रहा। उन्होंने शुरुआती दिक्कतों को स्वीकार किया लेकिन कहा कि दवाओं से स्थिति में सुधार हुआ। पति ने यह भी बताया कि उन्होंने पत्नी को आर्थिक मदद दी थी।
अदालत ने मेडिकल सबूतों को कैसे देखा?
अदालत ने सभी मेडिकल दस्तावेजों की गहन समीक्षा की। वर्ष 2021 में गांधी हॉस्पिटल में हुए पोटेंसी टेस्ट में पति के नपुंसक होने की पुष्टि नहीं हुई। शादी से पहले की रिपोर्ट में भी उनका स्पर्म काउंट सामान्य पाया गया था।
देरी से अर्जी दाखिल करना संदेहास्पद
अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि पत्नी ने शादी के पांच साल बाद वर्ष 2018 में तलाक के लिए अर्जी दी थी। अदालत ने सवाल उठाया कि अगर शादी के बाद कभी भी शारीरिक संबंध नहीं बने तो वह इतनी देर तक चुप क्यों रही। इस देरी को अदालत ने संदेह के दायरे में लिया।
अमेरिका के वित्तीय मामले अप्रासंगिक
पत्नी ने अमेरिका में चल रहे कुछ वित्तीय मामलों के कागजात अदालत में पेश किए। लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि उन दस्तावेजों का इस वैवाहिक विवाद से कोई सीधा संबंध नहीं है। इसलिए उन्हें सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया गया।
निचली अदालत का फैसला बरकरार
जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और जस्टिस बी.आर. मधुसूदन राव की पीठ ने रंगारेड्डी फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। पीठ ने कहा कि पति के वैवाहिक दायित्वों का निर्वहन करने में असमर्थ होने का कोई पुख्ता सबूत मौजूद नहीं है। इस आधार पर तलाक और गुजारा भत्ता देने का कोई कारण नहीं बनता।
