National News: अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। संगठन ने उच्चतम न्यायालय के उस निर्णय पर चिंता जताई है जिसमें कक्षा आठ तक पढ़ाने वाले सभी सेवारत शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा अनिवार्य की गई है। इससे देशभर के लाखों शिक्षकों की नौकरी खतरे में पड़ सकती है।
शैक्षिक महासंघ का कहना है कि आरटीई अधिनियम 2009 और एनसीटीई की अधिसूचना के अनुसार दो अलग श्रेणियां थीं। 2010 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों को टीईटी से छूट दी गई थी जबकि 2010 के बाद नियुक्त शिक्षकों के लिए इसे अनिवार्य किया गया था। न्यायालय के नए निर्णय ने इस भेद को समाप्त कर दिया है।
हिमाचल प्रदेश के शिक्षकों ने जताई चिंता
हिमाचल प्रदेश शिक्षक महासंघ के पदाधिकारियों ने इस निर्णय पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि विगत कई वर्षों से शिक्षा व्यवस्था संभाल रहे अनुभवी शिक्षकों पर अचानक टीईटी थोपना अन्यायपूर्ण है। इससे शिक्षा की निरंतरता भी बाधित होगी। सरकार को इसे केवल भविष्य की नियुक्तियों पर लागू करना चाहिए।
20 लाख से अधिक शिक्षक प्रभावित
इस निर्णय से देशभर के 20 लाख से अधिक शिक्षक प्रभावित होंगे। जिन शिक्षकों ने वैधानिक प्रक्रिया के तहत नियुक्ति प्राप्त की थी, उनकी सेवा अब असुरक्षित हो गई है। इस स्थिति से शिक्षकों का मनोबल टूटेगा और शिक्षा व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। शिक्षक संगठनों ने इस पर गंभीर चिंता जताई है।
प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की अपील
अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि यह निर्णय केवल भविष्यलक्षी रूप से लागू हो। 2010 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों की सेवा सुरक्षा और गरिमा की रक्षा की जाए। संगठन ने आवश्यक नीतिगत या विधायी उपाय करने की मांग की है ताकि लाखों शिक्षकों का भविष्य सुरक्षित हो सके।
शिक्षक संगठनों का मानना है कि इस निर्णय से शिक्षा के क्षेत्र में अनिश्चितता का माहौल बनेगा। अनुभवी शिक्षकों को अचानक परीक्षा देना अनिवार्य करना उचित नहीं है। सरकार को इस मामले में शिक्षकों की चिंताओं को समझना चाहिए और उचित समाधान निकालना चाहिए।
