New Delhi News: मद्रास हाईकोर्ट के जज जीआर स्वामीनाथन के फैसलों पर मचे बवाल के बीच सुप्रीम कोर्ट में एक अहम याचिका दायर हुई है। इसमें जजों को डराने-धमकाने और न्यायिक आदेशों को सांप्रदायिक रंग देने से रोकने की मांग की गई है। वकील जीएस मणि ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत यह जनहित याचिका (PIL) दाखिल की है। उनका कहना है कि यह कदम किसी एक जज के लिए नहीं, बल्कि पूरी न्यायपालिका की आजादी बचाने के लिए उठाया गया है।
न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा जरूरी
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जस्टिस स्वामीनाथन के तिरुपरनकुंद्रम दीपम मामले वाले आदेश के बाद विवाद बढ़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि इसके बाद राजनीतिक बयानबाजी और वकीलों के प्रदर्शन शुरू हो गए। सोशल मीडिया पर भी अभियान चलाए जा रहे हैं। याचिका के अनुसार, ये प्रतिक्रियाएं संवैधानिक आलोचना की सीमा पार कर चुकी हैं। अब यह न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश लग रही है।
भीड़ के दबाव से नहीं चलेगा कानून
याचिका में साफ कहा गया है कि जजों के फैसलों पर सड़क पर प्रदर्शन या ऑनलाइन गालियों से दबाव नहीं बनाया जा सकता। किसी भी फैसले के खिलाफ संविधान में अपील या पुनर्विचार का ही रास्ता है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में चेतावनी दी गई है कि जजों के खिलाफ ऐसे अभियानों से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर बुरा असर पड़ेगा। इससे जज अपना काम निडर होकर नहीं कर पाएंगे।
सांप्रदायिक सौहार्द को खतरा
वकील जीएस मणि ने अपनी याचिका में कहा है कि न्यायिक फैसलों को धार्मिक रंग देना खतरनाक है। इससे संवैधानिक अदालतों में आम लोगों का भरोसा कमजोर होता है। यह भीड़ के दबाव वाले न्याय को बढ़ावा देता है। याचिका में तर्क दिया गया है कि इससे तमिलनाडु में कानून-व्यवस्था और सांप्रदायिक सौहार्द को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट से तुरंत निर्देश देने की मांग की गई है।
