New Delhi News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। यह याचिका बोतल बंद पानी के मानकों को लेकर दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘लग्जरी मुकदमेबाजी’ करार दिया है। प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि देश में लोग पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में पैक्ड पानी की गुणवत्ता पर बहस करना अभी जरूरी नहीं है।
याचिकाकर्ता को दी गांवों में जाने की सलाह
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमीनी हकीकत देखने की सलाह दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आपको गरीब क्षेत्रों में जाना चाहिए। वहां आपको पता चलेगा कि पेयजल की उपलब्धता कैसी है। यह आदेश जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने सारंग वामन यदवाडकर की याचिका पर दिया। याचिका में भारत में बोतल बंद पानी के लिए अंतरराष्ट्रीय नियम लागू करने की मांग की गई थी।
अमेरिका और यूरोप के नियम यहां नहीं चलेंगे
वकील अनीता शेनाय ने कोर्ट में स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों की दलील दी। उन्होंने कहा कि साफ पानी मिलना नागरिकों का अधिकार है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट इन दलीलों से प्रभावित नहीं हुआ। पीठ ने कहा कि क्या हम अमेरिका, जापान या यूरोप के नियम यहां लागू कर सकते हैं? यह सब अमीर और शहरी वर्ग की चिंताएं हैं। ग्रामीण इलाकों में लोग भूजल पीते हैं और स्वस्थ रहते हैं।
गांधी जी का दिया उदाहरण
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने महात्मा गांधी का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि गांधी जी जब दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे तो उन्होंने भारत को समझने के लिए गरीब इलाकों का दौरा किया था। याचिकाकर्ता को भी उन जगहों पर जाना चाहिए जहां पीने के पानी की भारी किल्लत है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर यह याचिका ऐसे गांवों के लिए होती तो हम इसे गंभीरता से लेते। अंत में कोर्ट ने याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।