Shimla News: सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश की पांच बीघा भूमि नियमितीकरण नीति पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर अगली सुनवाई तक स्थिति न बदलने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने इस नीति को असांविधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीम मेहता की पीठ ने यह आदेश पारित किया। यह मामला सीपीआईएम के सचिव डॉ. ओंकार शाद की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। अदालत ने हस्तक्षेप आवेदन को मुख्य याचिका के साथ जोड़ दिया है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पांच अगस्त को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने राज्य के भू-राजस्व अधिनियम की धारा 163-ए को असंवैधानिक करार दिया। इस धारा के तहत सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को नियमित करने का प्रावधान था।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार को सभी अतिक्रमणों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि इससे प्रशासनिक शून्यता पैदा होगी। इसका ग्रामीण भू-धारकों और किसानों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।
नीति का इतिहास
हिमाचल प्रदेश में पांच बीघा भूमि नियमिती करण नीति साल 2002 में बनाई गई थी। तत्कालीन भाजपा सरकार ने भू-राजस्व अधिनियम में संशोधन कर नई धारा जोड़ी थी। इसके तहत पांच से लेकर 20 बीघा तक की जमीन नियमित की जानी थी।
इस नीति के तहत राज्य सरकार ने आवेदन मांगे थे। राज्य के 1.65 लाख से अधिक लोगों ने अपनी जमीन को नियमित करने के लिए आवेदन किया था। यह नीति लंबे समय से विवादों में रही है।
कोर्ट का रुख
अगस्त 2002 मेंही हाई कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप किया था। कोर्ट ने नियमिती करण की प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दी थी। हालांकि, कोर्ट ने पट्टा जारी करने पर रोक लगा दी थी। यह मामला तब से विभिन्न न्यायिक प्रक्रियाओं से गुजर रहा है।
नवीनतम सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक स्थिति न बदलने का फैसला सुनाया। इससे राज्य के उन हजारों लोगों को राहत मिली है जिन्होंने नियमितीकरण के लिए आवेदन किया है।
यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई तक सभी पक्षों को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है। इसके बाद ही कोई अंतिम फैसला आएगा।
