शनिवार, दिसम्बर 20, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में 65 लाख हटाए गए मतदाताओं का विवरण मांगा, ADR और राजनीतिक दलों को देना होगा डाटा

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Bihar News: सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से बिहार में 65 लाख हटाए गए मतदाताओं का विवरण मांगा। यह जानकारी 9 अगस्त तक जमा करनी है। कोर्ट ने कहा कि यह डेटा राजनीतिक दलों और NGO ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ को दें। यह मामला 24 जून के विशेष गहन पुनरीक्षण आदेश से जुड़ा है। कोर्ट 12 और 13 अगस्त को इसकी सुनवाई करेगा। यह कदम मतदाता सूची की पारदर्शिता के लिए है।

कोर्ट का निर्वाचन आयोग को निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को सख्त निर्देश दिए। 65 लाख मतदाताओं के हटाए जाने का विवरण 9 अगस्त तक दें। जस्टिस सूर्यकांत, उज्जल भुइयां और एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह आदेश दिया। यह जानकारी पहले राजनीतिक दलों को दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि इसे ADR को भी सौंपें। हटाए गए मतदाताओं के नाम और कारण स्पष्ट करें। यह मसौदा सूची की पारदर्शिता के लिए जरूरी है।

ADR की याचिका और मांगें

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने नया आवेदन दायर किया। उन्होंने 65 लाख हटाए गए मतदाताओं के नाम प्रकाशित करने की मांग की। ADR ने कहा कि हटाने का कारण बताना जरूरी है। कारणों में मृत्यु, पलायन या डुप्लिकेट एंट्री शामिल हो सकते हैं। प्रशांत भूषण ने कोर्ट में यह दलील दी। उन्होंने कहा कि कुछ दलों को सूची मिली, लेकिन कारण नहीं बताए गए। यह पारदर्शिता के खिलाफ है।

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कोर्ट की प्रतिक्रिया और टिप्पणी

जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने प्रशांत भूषण से कहा कि यह मसौदा सूची है। हटाने का कारण बाद में बताया जाएगा। कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से हर प्रभावित मतदाता का विवरण मांगा। पीठ ने कहा कि आयोग शनिवार तक जवाब दाखिल करे। भूषण को यह देखने का मौका मिलेगा। कोर्ट ने कहा कि वह खुलासे की जांच करेगा। यह सुनवाई 12 अगस्त से शुरू होगी।

विशेष गहन पुनरीक्षण का विवाद

निर्वाचन आयोग ने 24 जून को SIR आदेश जारी किया। बिहार में मतदाता सूची को फिर से तैयार किया गया। 7.24 करोड़ मतदाताओं ने गणना फॉर्म भरे। 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए। इसमें 22 लाख मृत, 35 लाख पलायन और 7 लाख डुप्लिकेट थे। विपक्ष ने इसे NRC का बैकडोर तरीका बताया। कोर्ट ने कहा कि बड़े पैमाने पर हटाने पर हस्तक्षेप होगा।

विपक्ष और NGO की चिंताएं

विपक्षी दलों ने SIR प्रक्रिया पर सवाल उठाए। कांग्रेस, RJD और CPI(ML) ने इसे नागरिकता जांच बताया। उन्होंने कहा कि यह लाखों मतदाताओं को वोट से वंचित करेगा। ADR ने कहा कि 75% मतदाताओं ने सहायक दस्तावेज नहीं दिए। उनकी सूची बूथ स्तरीय अधिकारियों की सिफारिश पर बनी। कोर्ट ने आयोग से आधार और वोटर ID स्वीकार करने को कहा। यह प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठाता है।

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आगामी सुनवाई और प्रक्रिया

सुप्रीम कोर्ट 12 और 13 अगस्त को मामले की सुनवाई करेगा। निर्वाचन आयोग के 24 जून के आदेश को चुनौती दी गई है। कोर्ट ने कहा कि आयोग एक संवैधानिक निकाय है। उसे कानून के तहत काम करना होगा। अगर बड़े पैमाने पर मतदाता हटाए गए, तो कोर्ट हस्तक्षेप करेगा। अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित होगी। तब तक दावे और आपत्तियां दर्ज की जा सकती हैं।

पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर

कोर्ट ने मतदाता सूची में पारदर्शिता पर जोर दिया। उसने आयोग से हटाए गए मतदाताओं का पूरा विवरण मांगा। कारणों में मृत्यु, पलायन और डुप्लिकेट एंट्री शामिल हैं। आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया निष्पक्ष चुनाव के लिए है। लेकिन विपक्ष और ADR ने इसकी वैधता पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि हर मतदाता का हक सुरक्षित होना चाहिए। यह मामला बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अहम है।

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

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