शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

Supreme Court: राष्ट्रपति मुर्मू ने जजों को दी बड़ी नसीहत, कहा- पीछे छूट गए लोगों का हाथ थामें

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New Delhi News: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश की सर्वोच्च अदालत में जजों को एक अभिभावक की तरह समझाया. संविधान दिवस के मौके पर Supreme Court में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में उन्होंने जजों को कड़ा संदेश दिया. उन्होंने साफ कहा कि तरक्की की दौड़ में जो लोग पीछे रह गए हैं, उन पर जजों को खास ध्यान देना चाहिए. राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका को समानता और भाईचारे जैसे संवैधानिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए काम करना होगा.

पिता की सीख का किया जिक्र

राष्ट्रपति ने अपने संबोधन के दौरान एक बेहद भावुक और प्रेरक किस्सा साझा किया. उन्होंने अपने पिता द्वारा दी गई एक पुरानी सीख को याद किया. राष्ट्रपति ने बताया कि उनके पिता हमेशा कहते थे कि जीवन में आगे बढ़ना अच्छी बात है. लेकिन सिर्फ आगे बढ़ना ही बहादुरी नहीं होती. असली बहादुरी अपने पीछे चल रहे लोगों को हौसला देने और उन्हें साथ लेकर आगे बढ़ने में है. उन्होंने जजों से इसी भावना के साथ काम करने की अपील की.

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समानता और महिला शक्ति पर जोर

राष्ट्रपति मुर्मू ने न्यायपालिका और कार्यपालिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की वकालत की. उन्होंने कहा कि संविधान ने नारी शक्ति को मजबूती दी है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. हमें महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए अपनी मानसिकता बदलनी होगी. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या हम संविधान में लिखे स्वतंत्रता और समानता के वादों को पूरी तरह निभा पाए हैं? उन्होंने याद दिलाया कि 24 साल बाद हम संविधान के 100 साल पूरे करेंगे, तब तक हमें ये लक्ष्य पाने होंगे.

मध्यस्थता से निपटाएं विवाद

अदालती मुकदमों का बोझ कम करने के लिए राष्ट्रपति ने मध्यस्थता (Mediation) के जरिए विवाद सुलझाने पर जोर दिया. उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि इससे वकीलों को लग सकता है कि उनका काम कम हो जाएगा. लेकिन पुराने समय में भी लोग बिना कचहरी गए आपसी बातचीत से मसले सुलझा लेते थे. Supreme Court और निचली अदालतों को इस पुराने और प्रभावी तरीके को बढ़ावा देना चाहिए.

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सीजेआई ने स्वीकारी चुनौती

इस कार्यक्रम में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सूर्य कांत भी मौजूद थे. उन्होंने राष्ट्रपति की बातों का समर्थन किया. सीजेआई ने माना कि देश की अर्थव्यवस्था भले ही मजबूत हो रही है, लेकिन आम नागरिक के अधिकारों की सुरक्षा आज भी एक चुनौती है. उन्होंने भरोसा दिलाया कि अदालत संविधान और नागरिकों के अधिकारों के रक्षक के रूप में अपनी जिम्मेदारी पूरी निष्ठा से निभाती रहेगी. उन्होंने संविधान सभा की महिला सदस्य बेगम एजाज रसूल के योगदान को भी याद किया.

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

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