National News: सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता जया ठाकुर की याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का कानून तुरंत लागू करने की मांग की गई है। जस्टिस बीवी नागरत्न और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने सरकार से जवाब मांगा है।
पीठ ने सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना सभी नागरिकों को राजनीतिक और सामाजिक समानता का अधिकार देती है। पीठ ने कहा कि देश में सबसे बड़ी अल्पसंख्यक महिलाएं हैं जो आबादी का 48 प्रतिशत हैं। यह महिलाओं की राजनीतिक समानता का मामला है।
पीठ ने की तीखी टिप्पणी
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील शोभा गुप्ता ने दलील पेश की। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी महिलाओं को प्रतिनिधित्व के लिए अदालत आना पड़ रहा है। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। पीठ ने इस पर सहमति जताई और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।
पीठ ने स्पष्ट किया कि परिसीमन अभ्यास का इंतजार किए बिना कानून लागू किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि कानून का प्रवर्तन कार्यपालिका की जिम्मेदारी है। हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया कि वह कोई आदेश जारी नहीं कर सकती। उसने केवल नोटिस जारी करने का निर्देश दिया।
नारी शक्ति वंदन अधिनियम की पृष्ठभूमि
नारी शक्ति वंदन अधिनियम को 28 सितंबर 2023 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी। संसद के विशेष सत्र में इस कानून को पारित किया गया था। यह कानून लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है। लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है।
याचिका में उस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है जो जनगणना और परिसीमन को आरक्षण की पूर्व शर्त बनाता है। याचिकाकर्ता का कहना है कि इस शर्त के कारण कानून का क्रियान्वयन अनिश्चित काल के लिए टल गया है। उन्होंने तत्काल लागू करने की मांग की है।
जया ठाकुर ने दायर की थी याचिका
मध्य प्रदेश महिला कांग्रेस की महासचिव जया ठाकुर ने यह याचिका दायर की थी। उन्होंने 2023 में ही याचिका दायर कर दी थी। उन्होंने 2024 के आम चुनाव से पहले महिला आरक्षण लागू करने की मांग की थी। लेकिन अब तक यह कानून लागू नहीं हो सका है।
जया ठाकुर की याचिका में कहा गया है कि महिला आरक्षण कानून को लागू करने में देरी महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि जनगणना और परिसीमन की शर्त अनावश्यक है। इसके बिना भी कानून को लागू किया जा सकता है।
कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ी
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके मामले को आगे बढ़ाया है। अब केंद्र सरकार को कोर्ट में अपना जवाब देना होगा। सरकार को यह बताना होगा कि महिला आरक्षण कानून को कब तक लागू किया जाएगा। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख तय नहीं की है।
वकील शोभा गुप्ता ने कोर्ट में जोर देकर कहा कि महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व का मामला मौलिक अधिकारों से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना संवैधानिक दायित्व है। कोर्ट ने इस दलील को गंभीरता से लिया।
