शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

सुप्रीम कोर्ट: सिंगूर भूमि वापसी पर बड़ा फैसला, औद्योगिक इकाइयों को राहत नहीं, जानें पूरा मामला

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West Bengal News: सुप्रीम कोर्ट ने सिंगूर में टाटा नैनो परियोजना के लिए अधिग्रहित जमीन को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि अधिग्रहण से पहले वहां चल रही औद्योगिक इकाइयों को जमीन वापस नहीं की जाएगी। कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को पलट दिया जिसमें एक कंपनी को जमीन लौटाने का निर्देश दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ ने वर्ष 2016 के अपने ही एक फैसले की व्याख्या करते हुए यह स्पष्टीकरण दिया। 2016 में कोर्ट ने इस अधिग्रहण को रद्द करते हुए जमीन मूल मालिकों को वापस करने का आदेश दिया था।

पीठ ने कहा कि 2016 का निर्णय विशेष परिस्थितियों में लिया गया था। अधिग्रहण से गरीब और कमजोर किसान बुरी तरह प्रभावित हुए थे। उनके पास लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए संसाधन नहीं थे। इसलिए अदालत ने उनकी रक्षा के लिए असाधारण हस्तक्षेप किया था।

कोर्ट ने साफ किया कि ऐसी राहत उन वाणिज्यिक उद्यमों को नहीं दी जा सकती जिनके पास पर्याप्त वित्तीय क्षमता है। यह राहत सिर्फ उन वंचित वर्गों के लिए है जो संस्थागत प्रक्रियाओं तक पहुंच नहीं बना पाते। यह फैसला संरचनात्मक असमानता को दूर करने के लिए था।

यह मामला सैंटी सेरामिक्स कंपनी की याचिका से जुड़ा था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इस कंपनी को 28 बीघा जमीन वापस करने का आदेश दिया था। अधिग्रहण से पहले यह कंपनी वहां सिरेमिक इन्सुलेटर का कारखाना चलाती थी।

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सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस आदेश को रद्द कर दिया है। पीठ ने कहा कि सैंटी सेरामिक्स सुरक्षात्मक ढांचे के दायरे में नहीं आती। कंपनी ने यह जमीन खरीदकर वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की थी। उसके पास 60,000 वर्ग फुट का बड़ा विनिर्माण संयंत्र था।

कंपनी एक सौ से अधिक श्रमिकों को रोजगार दे रही थी। इसके विपरीत सीमांत किसानों की स्थिति पूरी तरह भिन्न थी। उनकी पूरी आजीविका केवल जमीन पर निर्भर थी। जमीन छिनने के बाद उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था।

पीठ ने कहा कि वर्गीकरण का कानूनी महत्व है। सभी प्रभावित पक्षों को एकसमान राहत देने के बजाय संरचनात्मक रूप से कमजोर लोगों को राहत दी गई। इससे अधिग्रहण प्रक्रिया में निश्चितता भी बनी रही और कमजोर वर्ग की सुरक्षा भी सुनिश्चित हुई।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि न्यायिक हस्तक्षेप तभी जरूरी होता है जब सिस्टम में खामी हो। जब कुछ वर्गों तक न्याय की पहुंच बाधित होती है तब अदालत को कदम उठाना पड़ता है। यह स्थिति वित्तीय रूप से सक्षम उद्यमों पर लागू नहीं होती।

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यह फैसला भूमि अधिग्रहण के मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करता है। इससे स्पष्ट हो गया है कि न्यायालय गरीब और संपन्न वर्ग के बीच अंतर करते हुए निर्णय देती है। सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना अदालतों का प्रमुख उद्देश्य है।

पश्चिम बंगाल सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। राज्य सरकार का तर्क था कि हाईकोर्ट ने 2016 के फैसले की सही व्याख्या नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की इस दलील को स्वीकार कर लिया है।

अब सिंगूर की अधिग्रहित भूमि पर मूल किसानों का हक बना रहेगा। औद्योगिक इकाइयां इस जमीन की वापसी का दावा नहीं कर पाएंगी। इस फैसले से लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर विराम लग गया है।

सिंगूर में टाटा मोटर्स की नैनो कार परियोजना के लिए वर्ष 2006 में भूमि का अधिग्रहण किया गया था। इसके बाद विरोध प्रदर्शनों के चलते परियोजना को स्थानांतरित करना पड़ा। तब से यह जमीन विवादों के केंद्र में बनी हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट के इस ताजा फैसले से सिंगूर भूमि विवाद पर एक स्पष्टता आ गई है। अदालत ने सामाजिक न्याय के सिद्धांत को प्राथमिकता देते हुए अपना निर्णय सुनाया है। यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मार्गदर्शक का काम करेगा।

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

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