New Delhi: देश के Supreme Court में अब वकीलों की लंबी-लंबी दलीलें नहीं चलेंगी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सूर्यकांत ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। उन्होंने साफ कर दिया है कि जनवरी 2026 से हर केस में बहस के लिए एक सख्त समय सीमा तय की जाएगी। इसका सीधा मकसद गरीबों और आम लोगों के मामलों की सुनवाई समय पर सुनिश्चित करना है। CJI का मानना है कि इससे अमीर और रसूखदार लोगों के वकीलों द्वारा कोर्ट का ज्यादा समय लेने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।
जनवरी 2026 से बदल जाएंगे नियम
CJI सूर्यकांत ने स्पष्ट किया है कि Supreme Court में अब किसी भी वकील को मनमाने ढंग से घंटों बोलने की छूट नहीं मिलेगी। नए नियमों के तहत, अंतिम सुनवाई वाले मामलों में वकीलों को पहले से लिखित सबमिशन (Written Submission) देना अनिवार्य होगा। इसमें उन्हें यह भी लिखकर देना होगा कि वे अपनी दलीलें पूरी करने में कितना समय लेंगे। कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि अंतिम सुनवाई के लिए लिस्टेड मामलों में अब तारीख आगे नहीं बढ़ाई जाएगी (No Adjournment)।
क्यों लिया गया यह कड़ा फैसला?
यह टिप्पणी मतदाता सूची पुनरीक्षण से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई के दौरान आई। कोर्ट में मौजूद कई वरिष्ठ वकील लंबी दलीलें दे रहे थे। इस पर CJI ने नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था पूरी तरह अन्यायपूर्ण है। एक गरीब आदमी एक्सीडेंट क्लेम या जमानत के लिए Supreme Court आता है। लेकिन कुछ ‘स्टार वकीलों’ की घंटों चलने वाली बहस के कारण उस गरीब का केस नहीं सुना जाता। वह व्यक्ति निराश होकर घर लौट जाता है। अब न्यायिक समय का बंटवारा सब के लिए बराबर होगा।
विधवा की कहानी सुन भावुक हुई कोर्ट
सुनवाई के दौरान CJI ने 23 साल बाद न्याय पाने वाली एक विधवा का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि उस महिला के पति की मौत रेलवे ट्रैक पर हुई थी। उसे Supreme Court से 8 लाख रुपये का मुआवजा मिला, लेकिन इसमें 23 साल लग गए। वह न्याय की उम्मीद छोड़कर बिहार के एक दूरदराज गांव में गुमनामी में जी रही थी। उसका बैंक खाता तक नहीं था।
मुवक्किल के चेहरे पर मुस्कान ही असली न्याय
CJI ने युवा वकील फौजिया शकील की तारीफ की। फौजिया ने बिना फीस लिए उस महिला का केस लड़ा और प्रशासन की मदद से उसे ढूंढ निकाला। इसके बाद उसका खाता खुलवाकर मुआवजा जमा कराया गया। CJI सूर्यकांत ने कहा कि 23 साल बाद उस बुजुर्ग महिला के चेहरे पर जो मुस्कान आई, वही न्याय व्यवस्था का असली काम है। कोर्ट का लक्ष्य हर वादी को समय पर न्याय देकर उसके चेहरे पर मुस्कान लाना है।
