Delhi News: सुप्रीम कोर्ट ने एक IIT छात्र की याचिका पर गौर करते हुए IIT खड़गपुर और AIIMS दिल्ली को नोटिस जारी किया है। यह मामला एक ऐसे छात्र का है जो गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहा है। छात्र चाहता है कि उसका दाखिला IIT खड़गपुर से IIT दिल्ली में ट्रांसफर कर दिया जाए ताकि उसे AIIMS दिल्ली में बेहतर इलाज मिल सके और उसके माता-पिता के साथ रहने की सुविधा भी।
छात्र IIT खड़गपुर से बी.आर्क की पढ़ाई कर रहा है और उसे बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर नामक बीमारी है। उसके इलाज के लिए एक विशेष थेरेपी की जरूरत है जो केवल AIIMS दिल्ली में उपलब्ध है। इसके अलावा उसके माता-पिता दिल्ली में रहते हैं जो उसकी देखभाल कर सकते हैं। यही वजह है कि उसने IIT दिल्ली में ट्रांसफर की मांग की।
IIT खड़गपुर ने क्यों मना किया ट्रांसफर?
छात्र के वकील के मुताबिक IIT खड़गपुर ने इस मांग को ठुकरा दिया। याचिका में दावा किया गया है कि IIT के अपने नियमों के तहत मेडिकल आधार पर ट्रांसफर की व्यवस्था है। पहले भी कई अन्य छात्रों को इस आधार पर ट्रांसफर दिया गया है। इसलिए इस छात्र के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जा रहा है।
IIT खड़गपुर के इस फैसले से छात्र का इलाज बीच में ही रु गया है। इससे उसकी सेहत और पढ़ाई दोनों पर बुरा असर पड़ने का खतरा है। छात्र ने कोर्ट से गुहार लगाई कि उसकी मेडिकल स्थिति को गंभीरता से लिया जाए और उसके ट्रांसफर को मंजूरी दी जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने IIT खड़गपुर, IIT दिल्ली और AIIMS दिल्ली से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि छात्र की ट्रांसफर अर्जी पर नियमों के अनुसार विचार किया जाना चाहिए।
याचिका में एक और महत्वपूर्ण मांग की गई है। छात्र ने मांग की है कि अगले दो हफ्तों के भीतर एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाए। यह बोर्ड विशेष रूप से AIIMS दिल्ली या IIT दिल्ली में ही बैठे ताकि छात्र का मेडिकल परीक्षण जल्दी हो सके और उसके मामले का शीघ्र निपटारा हो।
अगली सुनवाई कब होगी?
मामले की अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को प्रस्तावित है। उस दिन सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर फिर से चर्चा होगी। IIT खड़गपुर, IIT दिल्ली और AIIMS दिल्ली को कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखना होगा। तब तक छात्र की मुश्किलें बनी रहेंगी।
यह मामला देश के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों की मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं और नीतियों पर सवाल खड़ा करता है। एक तरफ छात्र की पढ़ाई है तो दूसरी तरफ उसका स्वास्थ्य है। सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला इस मामले में एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर सकता है।
