शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

सुप्रीम कोर्ट: राज्यपालों के पास बिल रोकने की कोई शक्ति नहीं, केवल तीन विकल्प

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India News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राज्यपालों की बिल मंजूरी प्रक्रिया पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि राज्यपालों के पास विधानसभा से पारित विधेयकों को अनिश्चित काल तक रोकने का अधिकार नहीं है। अदालत ने कहा कि बिलों पर निर्णय लेने में अत्यधिक देरी संविधान के संघीय ढांचे का उल्लंघन होगी।

सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपालों के लिए तीन स्पष्ट विकल्प निर्धारित किए हैं। वे या तो बिल को मंजूरी दे सकते हैं, या उसे पुनर्विचार के लिए विधानसभा को वापस भेज सकते हैं, या राष्ट्रपति के पास सिफारिश के लिए प्रेषित कर सकते हैं। इससे अधिक कोई भी कार्यवाही उनके संवैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण मानी जाएगी।

समय सीमा पर सुप्रीम कोर्ट का रुख

अदालत ने माना कि बिल मंजूरी के लिए कोई निश्चित समय सीमा तय नहीं की जा सकती। हालांकि, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि इसमें अनुचित देरी होती है तो न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है। इस फैसले से राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच चल रहे विवादों पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ा है।

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यह मामला तमिलनाडु में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच विवाद से उत्पन्न हुआ था। वहां राज्यपाल ने कई बिलों को लंबे समय तक रोक कर रखा था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही आठ अप्रैल को स्पष्ट कर दिया था कि राज्यपालों के पास वीटो शक्ति नहीं है।

राष्ट्रपति के लिए समय सीमा

सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले आदेश में कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए बिल पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए। ग्यारह अप्रैल के इस आदेश के बाद राष्ट्रपति द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं पर भी अदालत ने विचार किया। राष्ट्रपति ने अदालत से चौदह सवालों के जवाब मांगे थे।

संविधान पीठ ने दोहराया कि राज्यपाल बिलों को अनिश्चितकाल के लिए लंबित नहीं रख सकते। हालांकि, अदालत ने यह भी माना कि राज्यपालों के लिए समयसीमा तय करना शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन होगा। इससे संवैधानिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी।

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संघवाद पर प्रभाव

पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि बिलों को एकतरफा रोकना संघवाद के सिद्धांत का उल्लंघन है। न्यायाधीशों ने राज्यपालों के विवेकाधिकार की संवैधानिक सीमाओं को रेखांकित किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह अधिकार असीमित नहीं हो सकता।

अदालत ने कहा कि यदि राज्यपाल अनुच्छेद 200 में तय प्रक्रिया का पालन किए बिना बिलों को रोकते हैं, तो यह संघीय ढांचे के हितों के विरुद्ध होगा। यह फैसला भारत के संवैधानिक ढांचे में राज्यपालों की भूमिका को नए सिरे से परिभाषित करता है।

इस निर्णय से राज्य सरकारों और राज्यपालों के बीच चल रहे कई विवादों का समाधान होने की उम्मीद है। यह स्पष्टता भविष्य में इसी तरह के मामलों में मार्गदर्शन का काम करेगी। संविधान के संघीय ढांचे को मजबूत करने में यह फैसला महत्वपूर्ण साबित होगा।

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