New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने तेजाब हमलों को लेकर बेहद कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने स्पष्ट कहा है कि किसी को जबरन एसिड पिलाने की घटना को ‘हत्या का प्रयास’ माना जाए। चीफ जस्टिस सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मुद्दे पर सख्त टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ऐसे जघन्य अपराध करने वाले आरोपी जमानत के हकदार बिल्कुल नहीं हैं। कोर्ट ने माना कि ऐसे अपराधी समाज में खुले घूमने लायक नहीं हैं।
कानून में बदलाव करेगी सरकार
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने स्वीकार किया कि मौजूदा कानून में एक बड़ी कमी है। अभी केवल शरीर पर एसिड फेंकने से हुए बाहरी नुकसान को ही दिव्यांगता (Disability) माना जाता है। सरकार ने कोर्ट को भरोसा दिलाया है कि वह कानून में सुधार करेगी। अब जबरन एसिड पिलाने से अंदरूनी अंगों को होने वाले नुकसान को भी दिव्यांगता की श्रेणी में रखा जाएगा।
धारा 307 के तहत चले मुकदमा
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नियमों में बदलाव के लिए 6 हफ्ते का समय दिया है। बेंच ने जोर देकर कहा कि ऐसे मामलों में आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत ही केस चलना चाहिए। कोर्ट ने इसे अमानवीय अपराध बताया है। जजों ने कहा कि कानून में ऐसे मामलों के लिए विशेष प्रावधान जोड़े जाने की सख्त जरूरत है। यह कानून के शासन के लिए एक बड़ी चुनौती है।
शाहीन मलिक की याचिका पर सुनवाई
यह महत्वपूर्ण आदेश एसिड अटैक सर्वाइवर शाहीन मलिक की याचिका पर आया है। शाहीन पर 2009 में पानीपत में एसिड हमला हुआ था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जिन पीड़ितों की आहार नली एसिड से जल जाती है, उन्हें दिव्यांग का दर्जा नहीं मिलता। वे नारकीय जीवन जीने को मजबूर होते हैं। कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट से भी ऐसे लंबित मुकदमों का ब्यौरा मांगा है। अदालत चाहती है कि इन मामलों का निपटारा तेजी से हो।
