Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में धर्म परिवर्तन के आरोप में दर्ज पांच एफआईआर रद्द कर दी हैं। जस्टिस जेबी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि आपराधिक कानून को निर्दोष लोगों को परेशान करने के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
पीठ ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध मतांतरण प्रतिषेध अधिनियम 2021 के तहत दर्ज मामलों को रद्द किया। इन मामलों में शुआट्स विश्वविद्यालय के कुलपति राजेंद्र बिहारी लाल भी आरोपी बनाए गए थे। अदालत ने कहा कि इन एफआईआर में कानूनी और प्रक्रियात्मक खामियां थीं।
अदालत ने क्या कहा अपने फैसले में
जस्टिस पार्डीवाला ने 158 पृष्ठों के फैसले में कहा कि एफआईआर में विश्वसनीय सबूतों का अभाव था। अदालत ने कहा कि इस तरह के अभियोजन को जारी रखना न्याय का उपहास होगा। पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह फैसला सुनाया।
अदालत ने स्पष्ट किया कि संवैधानिक उपचारों का अधिकार स्वयं एक मौलिक अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय पर इन अधिकारों को लागू करने की जिम्मेदारी है। जब मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो तो अदालत को हस्तक्षेप करना चाहिए।
मामले की मुख्य कमियां
सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्येक एफआईआर के तथ्यों का विस्तार से विश्लेषण किया। अदालत ने पाया कि मतांतरण का कोई भी पीड़ित शिकायत लेकर पुलिस के पास नहीं गया था। गवाहों के बयानों की सत्यता पर सवाल उठाए गए। गवाह न तो स्वयं मतांतरण के शिकार थे और न ही घटना स्थल पर मौजूद थे।
अदालत ने कहा कि एक ही कथित घटना के लिए कई एफआईआर दर्ज होना जांच शक्तियों के दुरुपयोग को दर्शाता है। इससे जांच प्रक्रिया की निष्पक्षता प्रभावित होती है। आरोपी व्यक्ति अनुचित उत्पीड़न का शिकार बनता है।
अदालत ने दिए पूर्व निर्णयों के संदर्भ
पीठ ने अपने फैसले में पूर्व के न्यायिक निर्णयों का हवाला दिया। अदालत ने कहा कि जब किसी अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग हो रहा हो तो हस्तक्षेप करना जरूरी होता है। उच्च न्यायालयों को ऐसे मामलों में अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए।
हालांकि पीठ ने माना कि उत्तर प्रदेश का मतांतरण विरोधी कानून एक विशेष कानून है। यह दंड प्रक्रिया संहिता से अलग विशेष प्रक्रियात्मक मानदंड निर्धारित करता है। फिर भी कानून के दुरुपयोग की अनुमति नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने मतांतरण संबंधी मामलों में कानूनी प्रक्रिया के महत्व को रेखांकित किया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि बिना पर्याप्त सबूतों के आपराधिक मामले दर्ज नहीं किए जा सकते। यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों के लिए महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा।
