India News: उच्चतम न्यायालय में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि निर्वाचन आयोग के ‘तेजी से शहरीकरण’ जैसे कारण टिकाऊ नहीं हैं। अदालत ने आयोग द्वारा पूरे देश में चल रही इस प्रक्रिया की वैधता पर सुनवाई जारी रखी है। यह मामला चुनावी पारदर्शिता और कानूनी अधिकार का महत्वपूर्ण पहलू है।
प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिका सुनी। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश होकर तर्क रखे। उन्होंने कहा कि आयोग का किसी एक क्षेत्र की सूची संशोधित करने का अधिकार पूरे देश में ऐसा करने का अधिकार नहीं देता। यह दलील मुख्य आधार बनी।
‘तेज शहरीकरण’ कारण पर वकील ने उठाए सवाल
सिंघवीने अदालत में स्पष्ट किया कि शहरीकरण एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। उन्होंने पूछा कि कोई क्षेत्र कब पूरी तरह शहरी हो जाता है। उनका तर्क था कि यह कारण विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकता। नियमों के अनुसार प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के लिए अलग और विशिष्ट कारण की जरूरत होती है।
उन्होंने नियमों में ‘किसी भी’ निर्वाचन क्षेत्र शब्द की व्याख्या पर जोर दिया। सिंघवी ने कहा कि इसका मतलब ‘सभी’ निर्वाचन क्षेत्र कतई नहीं है। केवल प्रशासनिक सुविधा के आधार पर इतने बड़े पैमाने पर संशोधन नहीं किया जा सकता। उन्होंने इस कदम को कानून का घोर उल्लंघन बताया।
वकील प्रशांत भूषण ने की आयोग की आलोचना
वकील प्रशांत भूषण नेइस प्रक्रिया को अभूतपूर्व बताया। उन्होंने कहा कि पहली बार मतदाता सूची एकदम नए सिरे से तैयार की जा रही है। यह कोई सामान्य संशोधन नहीं बल्कि नई शुरुआत है। उन्होंने इस काम में जल्दबाजी पर गंभीर सवाल उठाए।
भूषण ने जमीनी स्तर के बूथ लेवल अधिकारियों पर पड़ रहे दबाव की ओर भी ध्यान दिलाया। उन्होंने अधिकारियों द्वारा आत्महत्या की खबरों का जिक्र किया। एक मीडिया जांच का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पुनरीक्षण के बाद भी पांच लाख से अधिक डुप्लीकेट मतदाता बचे हैं।
अदालत ने व्यापक बयानबाजी पर लगाई रोक
प्रधान न्यायाधीश नेवकीलों से दलीलों तक सीमित रहने को कहा। जब भूषण ने आयोग को ‘तानाशाह’ कहा तो अदालत ने इस पर रोक लगा दी। पीठ ने स्पष्ट किया कि ऐसे व्यापक बयान जो दलीलों का हिस्सा नहीं हैं, नहीं दिए जाने चाहिए। अदालत ने केवल कानूनी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित रखने का निर्देश दिया।
वकील अश्विनी उपाध्याय ने पश्चिम बंगाल में अधिकारियों पर हमलों की घटनाओं का जिक्र किया। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि संबंधित अधिकारी इस मामले का ध्यान रखेंगे। अदालत ने इस पर विशेष टिप्पणी करने से परहेज किया और कानूनी मुद्दों पर ही बहस जारी रखी।
निर्वाचन आयोग के अधिकारों पर केंद्रित बहस
पूरीसुनवाई निर्वाचन आयोग के अधिकार क्षेत्र के इर्द-गिर्द घूमती रही। सवाल यह था कि क्या आयोग पूरे देश में एक साथ इस तरह का विशेष पुनरीक्षण कर सकता है। याचिकाकर्ताओं का मानना है कि यह अधिकार सीमित और विशिष्ट परिस्थितियों के लिए है।
निर्वाचन आयोग ने अपनी ओर से अभी तक औपचारिक जवाब दाखिल नहीं किया है। अदालत ने इस मामले में आयोग के जवाब का इंतजार किया है। गुरुवार को पीठ ने सुनवाई को आगे बढ़ाया है। वकील प्रशांत भूषण को अपनी दलीलें पूरी करने का एक और मौका मिलेगा।
मतदाता सूची की शुद्धता एक बड़ा मुद्दा
यह मामलामतदाता सूची की शुद्धता और अखंडता से सीधे जुड़ा हुआ है। चुनाव प्रक्रिया में जनता का विश्वास बनाए रखना जरूरी है। किसी भी प्रकार की अनियमितता से लोकतंत्र की नींव कमजोर हो सकती है। अदालत का निर्णय भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम करेगा।
पूरे देश में मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण चल रहा है। इस प्रक्रिया में बड़ी संख्या में अधिकारी और कर्मचारी लगे हुए हैं। यह काम बेहद संवेदनशील और जिम्मेदारी भरा है। किसी भी तरह की त्रुटि या विवाद से बचना आवश्यक है।
