India News: भारत के उच्चतम न्यायालय ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दो वरिष्ठ वकीलों को जारी समन को रद्द कर दिया है। साथ ही अदालत ने जांच एजेंसियों के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इनके तहत अब एजेंसियां मुवक्किलों को दी गई कानूनी सलाह के बारे में पूछताछ के लिए वकीलों को बुलाने से रोक दिया गया है। यह फैसला चीफ जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एन वी अंजारिया की पीठ ने दिया।
पीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि जांच एजेंसियां किसी भी वकील को उसके मुवक्किल का विवरण मांगने के लिए समन जारी नहीं कर सकतीं। ऐसा तभी संभव होगा जब यह संबंधित कानून के दायरे में आता हो। न्यायालय ने इस कदम को वकीलों पर अनुचित दबाव और कानूनी पेशे की स्वतंत्रता के लिए खतरा बताया। इससे मुवक्किल और वकील के बीच के विश्वास संबंध को ठेस पहुंचती है।
न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन ने कहा कि पीठ ने वकीलों की सुरक्षा के लिए नियम में छूट को सुसंगत बनाने का अनुरोध किया है। नए दिशा-निर्देश जांच एजेंसियों के अनुचित दबाव से कानूनी पेशे की रक्षा करने के लिए जारी किए गए हैं। यह फैसला ईडी द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को तलब किए जाने के बाद लिया गया।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वकीलों के डिजिटल उपकरणों को केवल संबंधित अधिकार क्षेत्र वाली अदालत के समक्ष ही जब्त किया जा सकता है। उन्हें खोला भी तभी जा सकता है जब अदालत आपत्तियों को खारिज कर दे और यह प्रक्रिया वकील की उपस्थिति में ही हो। इससे वकीलों की निजता के अधिकार की भी रक्षा होगी।
मौलिक अधिकारों का हनन
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वकीलों को समन जारी करना उन आरोपियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इन आरोपियों ने अपनी पैरवी के लिए उन वकीलों पर भरोसा जताया था। पीठ ने इसे वैधानिक सुरक्षा उपायों का उल्लंघन करार दिया। अदालत ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 132 का हवाला देते हुए इसकी पुष्टि की।
न्यायालय के अनुसार, जांच अधिकारी किसी वकील को मुवक्किल का विवरण मांगने के लिए समन तभी जारी कर सकते हैं जब यह धारा 132 में दिए गए अपवादों के दायरे में आता हो। यह फैसला कानूनी पेशे की स्वायत्तता और मुवक्किल-वकील गोपनीयता को मजबूती प्रदान करता है। इससे जांच एजेंसियों की मनमानी पर अंकुश लगेगा।
वकील संगठनों ने की थी आलोचना
ईडी द्वारा दातार और वेणुगोपाल को समन जारी किए जाने की सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन ने तीखी आलोचना की थी। इन संगठनों ने इस कदम को कानूनी पेशे को कमजोर करने वाली ‘परेशान करने वाली प्रवृत्ति’ बताया था। इस विवाद के बाद ईडी ने खुद भी आंतरिक निर्देश जारी किए थे।
20 जून को जारी इन निर्देशों में ईडी ने अपने अधिकारियों को धन शोधन के मामलों में वकीलों को तलब करने से रोक दिया था। एजेंसी ने कहा था कि ऐसा तभी संभव होगा जब निदेशक की पूर्व स्वीकृति मिल जाए और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 का पालन किया जाए। यह कदम तनाव को कम करने के लिए उठाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने लिया था संज्ञान
उच्चतम न्यायालय ने 12 अगस्त को खुद को देश के सभी नागरिकों का ‘संरक्षक’ बताया था। मामलों में मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करते समय जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को तलब किए जाने के मामले में अदालत ने स्वत: संज्ञान लिया था। ईडी द्वारा दातार और वेणुगोपाल को तलब किए जाने के बाद ही न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई शुरू की थी।
अदालत ने अपने फैसले में वकीलों और मुवक्किलों के बीच के विशेष संबंध को रेखांकित किया है। इस रिश्ते की गोपनीयता और विश्वसनीयता को बनाए रखना न्याय प्रणाली के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। नए दिशा-निर्देश इसी सिद्धांत की रक्षा करते हैं। यह फैसला भारतीय न्यायिक इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है।
