शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

सुप्रीम कोर्ट: चेन्नई सैन्य क्षेत्र की मस्जिद में नागरिकों को नमाज की अनुमति नहीं

Share

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने चेन्नई स्थित एक सैन्य क्वार्टर में मस्जिद में नमाज पढ़ने की अनुमति को लेकर याचिका खारिज कर दी है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए यह फैसला सुनाया। यह याचिका मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दे रही थी जिसमें सैन्य अधिकारियों के निर्णय को बरकरार रखा गया था।

पीठ ने स्पष्ट किया कि सैन्य क्षेत्रों में सुरक्षा संबंधी मुद्दों को गंभीरता से लेना होता है। अदालत ने कहा कि वह प्रशासनिक निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया था कि केवल कोविड-19 काल में ही प्रतिबंध लगाया गया था। लेकिन अदालत ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया।

हाईकोर्ट का पहले क्या था फैसला?

मद्रास हाईकोर्ट ने अप्रैल 2025 में अपने फैसले में कहा था कि वह सैन्य अधिकारियों के प्रशासनिक निर्णय में दखल नहीं दे सकती। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ दायर अपील खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि बाहरी लोगों को अनुमति देना या न देना प्रशासन का विशेषाधिकार है।

यह भी पढ़ें:  अग्निवीर रिजल्ट: भारतीय सेना जल्द जारी करेगी 2025 CEE परिणाम, जानें कैसे करें चेक

हाईकोर्ट ने छावनी भूमि प्रशासन नियम, 1937 का हवाला देते हुए फैसला सुनाया था। इन नियमों के अनुसार, सैन्य क्षेत्र में स्थित मस्जिद मुख्य रूप से सेना कर्मियों के उपयोग के लिए है। बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध सुरक्षा कारणों से आवश्यक है।

याचिकाकर्ता ने क्या दावे किए थे?

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने दावा किया था कि ‘मस्जिद-ए-आलीशान’ में 1877 से 2022 तक नागरिकों को प्रवेश की अनुमति थी। उन्होंने कहा कि केवल कोविड-19 महामारी के दौरान ही प्रतिबंध लगाया गया था। याचिकाकर्ता का मानना था कि अब प्रतिबंध हटाया जाना चाहिए।

वकील ने तर्क दिया कि लंबे समय से चली आ रही परंपरा को बनाए रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहले कभी सुरक्षा संबंधी कोई समस्या नहीं हुई। लेकिन अदालत ने इन तर्कों को पर्याप्त नहीं माना। सुरक्षा चिंताओं को अधिक महत्व दिया गया।

सैन्य अधिकारियों का क्या रहा रुख?

स्टेशन कमांडर ने जून 2021 में एक मौखिक आदेश जारी किया था। इस आदेश में याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन को खारिज कर दिया गया था। सैन्य अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि मस्जिद मुख्य रूप से यूनिट से जुड़े लोगों के उपयोग के लिए है। बाहरी लोगों के लिए इसमें प्रवेश वर्जित है।

यह भी पढ़ें:  मारुति सुजुकी अर्टिगा: नए जीएसटी में 31,500 रुपये सस्ती हुई कार, जानें आपकी महीने की किश्त कितनी आएगी

छावनी भूमि प्रशासन नियम, 1937 के प्रावधानों का पालन करते हुए यह निर्णय लिया गया। सैन्य प्राधिकारियों का मानना था कि सुरक्षा कारणों से बाहरी लोगों को प्रवेश नहीं दिया जा सकता। यह नीति सभी धर्मों के लिए समान रूप से लागू होती है।

अदालत ने सुरक्षा पहलुओं को दिया महत्व

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सुरक्षा पहलुओं को प्राथमिकता दी है। पीठ ने कहा कि सैन्य क्षेत्रों में सुरक्षा संबंधी चिंताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अदालत का मानना था कि प्रशासनिक निर्णयों में न्यायपालिका का हस्तक्षेप उचित नहीं होगा।

न्यायमूर्तियों ने स्पष्ट किया कि सैन्य विशेषज्ञों द्वारा लिए गए निर्णयों को सम्मान देना चाहिए। सुरक्षा मामलों में अदालतों को संयम बरतना चाहिए। इस मामले में सैन्य अधिकारियों के फैसले को उचित ठहराया गया।

Read more

Related News