India News: सुप्रीम कोर्ट ने महिला आरक्षण अधिनियम को लेकर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। यह मांग कांग्रेस नेता जया ठाकुर की याचिका पर की गई है। याचिका में नए परिसीमन की प्रक्रिया का इंतजार किए बिना महिला आरक्षण अधिनियम 2024 को लागू करने की मांग की गई है। मामले की सुनवाई जस्टिस बीवी नागरत्ना और आर महादेवन की पीठ कर रही है।
जस्टिस नागरत्ना ने इस मामले पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि महिलाएं इस देश में सबसे बड़ी अल्पसंख्यक हैं। जस्टिस नागरत्ना सुप्रीम कोर्ट की एकमात्र महिला न्यायाधीश हैं। उनकी यह टिप्पणी याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुई वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता के तर्कों के जवाब में आई।
संविधान की प्रस्तावना का हवाला
जस्टिस नागरत्ना ने संविधान की प्रस्तावना का हवाला देते हुए कहा कि सभी नागरिक राजनीतिक और सामाजिक समानता के हकदार हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि देश में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक महिलाएं हैं जो आबादी का लगभग 48 प्रतिशत हैं। यह टिप्पणी महिलाओं की राजनीतिक समानता के महत्व को रेखांकित करती है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून का प्रवर्तन कार्यपालिका पर निर्भर है। न्यायालय किसी विशिष्ट कार्य या कर्तव्य को पूरा करने के लिए परमादेश जारी नहीं कर सकता। यह बात अदालत ने याचिका में की गई मांगों के संदर्भ में कही। अदालत ने कानूनी प्रक्रियाओं की सीमाओं को स्पष्ट किया।
याचिका में की गई मुख्य मांग
याचिकाकर्ता जया ठाकुर ने नए परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होने का इंतजार किए बिना महिला आरक्षण अधिनियम 2024 को लागू करने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि आजादी के सात दशक बाद भी महिलाओं के प्रतिनिधित्व के लिए अदालत का रुख करना पड़ रहा है। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण बताई गई है।
वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क पेश किए। उन्होंने कहा कि महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व का मामला संवैधानिक महत्व का है। अदालत ने इन तर्कों को सुनने के बाद केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई का इंतजार है।
महिला आरक्षण अधिनियम 2024
महिला आरक्षण अधिनियम 2024 संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करता है। यह अधिनियम नए परिसीमन की प्रक्रिया के बाद लागू होना है। परिसीमन आयोग के गठन और उसकी रिपोर्ट के बाद ही यह कानून पूरी तरह लागू हो सकेगा।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि परिसीमन की प्रक्रिया में देरी के कारण महिला आरक्षण लागू होने में विलंब हो रहा है। इससे महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर असर पड़ रहा है। याचिका में इस विलंब को संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध बताया गया है। अदालत ने इन तर्कों पर केंद्र का जवाब मांगा है।
अदालत की सीमाओं का उल्लेख
अदालत ने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका की भूमिका की सीमाएं हैं। कानून लागू करना कार्यपालिका का दायित्व है। न्यायालय किसी विशिष्ट कार्य को करने के लिए आदेश नहीं दे सकता। यह टिप्पणी याचिका में की गई मांगों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।
जस्टिस नागरत्ना ने महिलाओं की राजनीतिक समानता के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह मामला महिलाओं की राजनीतिक समानता से जुड़ा हुआ है। अदालत ने मामले की गंभीरता को स्वीकार करते हुए केंद्र से जवाब मांगा है। मामले की आगे की सुनवाई बाद की तारीख में होगी।
