Khajuraho News: सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के खजुराहो स्थित प्रसिद्ध जवारी मंदिर में भगवान विष्णु की टूटी हुई मूर्ति की मरम्मत की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने इस मामले को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) का बताते हुए इसे ‘पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन’ करार दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को एएसआई से इस विषय पर बात करने की सलाह दी।
चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। पीठ ने स्पष्ट किया कि खजुराहो एक पुरातात्विक स्थल है और इससे जुड़े सभी मामले एएसआई के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, न कि न्यायपालिका के। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है।
याचिकाकर्ता राकेश दलाल ने अदालत में दलील दी थी कि मुगल आक्रमण के दौरान मूर्ति को नुकसान पहुंचा था। उनका कहना था कि मूर्ति की मरम्मत न होने से भक्तों के पूजा करने के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। उन्होंने बताया कि इस मामले में सरकार को कई बार अर्जी दी गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
चीफ जस्टिस गवई ने याचिकाकर्ता से हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, ‘जाओ और भगवान से ही कुछ करने को कहो। आप कहते हैं कि आप भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हैं। तो जाओ और अब प्रार्थना करो।’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पुरातात्विक स्थलों पर कोई भी काम एएसआई की अनुमति के बिना नहीं हो सकता।
पीठ ने आगे कहा कि इस मामले में कई तकनीकी पहलू हैं। एएसआई को यह तय करना होगा कि मूर्ति की मरम्मत करना उचित है या नहीं। अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता शिवलिंग की पूजा कर सकते हैं, जो खजुराहो में मौजूद है और दुनिया के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है।
जवारी मंदिर खजुराहो के पश्चिमी समूह के मंदिरों में शामिल है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। माना जाता है कि मंदिर का निर्माण चंदेल वंश के शासनकाल के दौरान करवाया गया था। खजुराहो के मंदिरों को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण देश के सभी प्रमुख पुरातात्विक स्थलों के रखरखाव और संरक्षण का कार्य करता है। एएसआई का मुख्यालय नई दिल्ली में है और इसके अंतर्गत हज़ारों ऐतिहासिक स्मारक आते हैं। संगठन पुरातात्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिए जिम्मेदार है।
इस मामले ने एक बार फिर पुरातात्विक स्थलों के रखरखाव और धार्मिक आस्था के बीच के जटिल संबंधों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अदालत के फैसले से स्पष्ट है कि कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना अनिवार्य है। एएसआई के पास इस मामले पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार होगा।
याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि मूर्ति को लगभग सात फुट ऊंचा बताया गया है और यह लंबे समय से खंडित अवस्था में है। मंदिर प्रशासन से कई बार अनुरोध करने के बाद भी जब कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो यह याचिका दायर की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय उन सभी समान मामलों के लिए एक अहम मिसाल कायम करता है, जहाँ धार्मिक मामले पुरातात्विक महत्व के स्थलों से जुड़े हों। अदालत ने संस्थागत प्रक्रियाओं का पालन करने पर बल दिया है। इससे एएसआई के अधिकार क्षेत्र को मान्यता मिली है।
