शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

सुप्रीम कोर्ट: राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए बिल मंजूरी की समयसीमा तय नहीं कर सकते

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India News: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के संवैधानिक सवालों का जवाब दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि वह राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा बिलों को मंजूरी देने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं कर सकती। यह बात संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में कही गई है।

हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपाल किसी बिल को विचार के लिए अनिश्चित काल तक अपने पास नहीं रोक सकते। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि बिलों को लंबे समय तक लटकाए रखना संवैधानिक प्रक्रिया के विरुद्ध होगा। यह फैसला राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच चल रहे विवादों को देखते हुए महत्वपूर्ण है।

आर्टिकल 142 की शक्तियों पर स्पष्टता

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एक महत्वपूर्ण बिंदु को स्पष्ट किया। अदालत ने कहा कि वह आर्टिकल 142 के तहत मिली विशेष शक्तियों का इस्तेमाल कर राज्यपाल के पास लंबित विधेयकों को स्वयं पारित नहीं घोषित कर सकती। यह स्पष्टीकरण संविधान की मूल संरचना को बनाए रखने के लिए जरूरी था।

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संविधान का आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय करने की शक्ति प्रदान करता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अदालत संविधान में दिए गए शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत को भी ताक पर रख दे। यह फैसला इसी सिद्धांत की पुष्टि करता है।

राज्यपालों की भूमिका पर मार्गदर्शन

अदालत ने राज्यपालों की भूमिका के संबंध में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल बिलों को असीमित समय तक नहीं रोक सकते। उन्हें समयबद्ध तरीके से निर्णय लेना होगा। यह स्पष्टीकरण कई राज्यों में लंबित बिलों के मामले में महत्वपूर्ण होगा।

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हाल के वर्षों में कई राज्यों ने शिकायत की है कि राज्यपाल विधानसभा से पारित बिलों को लंबे समय तक अपने पास रोकते हैं। इससे सरकार के कामकाज में बाधा आती है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐसे मामलों में मार्गदर्शन प्रदान करेगा।

संवैधानिक संतुलन बनाए रखना

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने संवैधानिक संस्थाओं के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया है। एक ओर अदालत ने राज्यपालों को अनिश्चितकालीन विलंब करने से रोका है। वहीं दूसरी ओर उसने संविधान में निहित शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत का भी पालन किया है।

यह फैसला भारत के संवैधानिक ढांचे में विभिन्न संस्थाओं की भूमिका को स्पष्ट करता है। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की मूल भावना के अनुरूप ही यह निर्णय दिया है। इससे भविष्य में इसी तरह के संवैधानिक मामलों में मार्गदर्शन मिलेगा।

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