National News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार से पूछा कि क्या संवैधानिक पदाधिकारियों की निष्क्रियता पर न्यायालय के हाथ बंधे रह सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने यह सवाल राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर रोक लगाने के मामले में उठाया।
संवैधानिक पीठ की सुनवाई
पांच सदस्यीय पीठ राष्ट्रपति संदर्भ पर सुनवाई कर रही है। मामला राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर विचार करने की समयसीमा से संबंधित है। पीठ ने कहा कि यदि कोई गड़बड़ी होती है तो उसका समाधान होना चाहिए। न्यायालय संविधान का संरक्षक है।
सॉलिसिटर जनरल का तर्क
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्यपालों द्वारा विधेयक रोके जाने पर राजनीतिक समाधान खोजने चाहिए। उन्होंने कहा कि हर समस्या का न्यायिक समाधान संभव नहीं है। मेहता ने बातचीत और वार्ता को प्राथमिकता देने का सुझाव दिया।
न्यायाधीशों की चिंता
जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि क्या निष्क्रियता की न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाई जा सकती है। जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि अतिवादी दृष्टिकोण अपनाने से संविधान का क्रियान्वयन प्रभावित होगा। पीठ ने जोर देकर कहा कि न्यायालय को संविधान की शाब्दिक व्याख्या करनी होगी।
राजनीतिक समाधान का प्रस्ताव
मेहता ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से गतिरोध सुलझाने के लिए वार्ता का सहारा लिया जाता रहा है। मुख्यमंत्री राज्यपाल से मिलते हैं और प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति से बातचीत होती है। कई बार टेलीफोन वार्ता से भी समाधान निकल आता है। यह प्रथा दशकों से चली आ रही है।
