New Delhi News: सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार के मंदिरों के कोष से विवाह मंडप बनाने के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने स्पष्ट किया कि धार्मिक स्थलों की संपत्तियों का उपयोग विवाह भवन निर्माण के लिए नहीं किया जा सकता।
अदालत ने चेतावनी दी कि मंदिर कोष का एक भी पैसा खर्च करने पर अवमानना मानी जाएगी। पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसने राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था।
अदालत की चिंताएं और टिप्पणियां
न्यायालय ने कहा कि ऐसे स्थानों पर अनुचित नृत्य और गीत चलने की आशंका रहती है। इन हॉलों में केवल नृत्य और संगीत ही नहीं होंगे, बल्कि मदिरा परोसने जैसी गतिविधियां भी हो सकती हैं। ऐसी गतिविधियों पर कोई नियंत्रण नहीं रहेगा।
पीठ ने सवाल उठाया कि मंदिर कोष का उपयोग शैक्षणिक संस्थान या चिकित्सालय जैसी परोपकारी गतिविधियों में क्यों नहीं किया जाता। अदालत ने कहा कि भक्तजन जो चढ़ावा चढ़ाते हैं, वे विवाह भवनों के लिए दान नहीं करते।
तमिलनाडु सरकार की दलीलें
तमिलनाडु सरकार ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि विवाह हॉलों का निर्माण सार्वजनिक हित में किया जा रहा है। राज्य में मंदिर परिसरों में विवाह होना सामान्य परंपरा है। वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और जयदीप गुप्ता ने सरकार का पक्ष रखा।
उन्होंने कहा कि मंदिरों में विवाह हमेशा धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार होते हैं। इनमें संगीत और नृत्य की गुंजाइश नहीं रहती। सरकार का मानना था कि यह योजना जनता के हित में है।
मद्रास उच्च न्यायालय का फैसला
मद्रास उच्च न्यायालय ने पहले ही सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया था। इस आदेश में तमिलनाडु के पांच अलग-अलग मंदिरों के कोष से विवाह भवन बनाने की अनुमति दी गई थी। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि धार्मिक संपत्तियों का उपयोग उचित उद्देश्यों के लिए होना चाहिए। भक्तों की भावनाओं का सम्मान करना सबसे महत्वपूर्ण है।
भविष्य की दिशा
इस फैसले के बाद तमिलनाडु सरकार को अपनी योजना पर पुनर्विचार करना होगा। मंदिर कोष के उपयोग के लिए नए दिशा-निर्देश बनाने होंगे। सरकार को परोपकारी कार्यों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी।
धार्मिक संस्थाओं और भक्तों ने इस फैसले का स्वागत किया है। उनका मानना है कि मंदिर के कोष का उपयोग केवल धार्मिक और धर्मार्थ कार्यों के लिए होना चाहिए। यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों के लिए महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा।
