New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने पति-पत्नी के विवाद में एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ किया कि पत्नी से घर के खर्च का हिसाब मांगना क्रूरता नहीं है। अगर पति एक्सेल शीट में भी हिसाब मांगता है, तो यह अपराध नहीं माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पति के खिलाफ दर्ज आपराधिक केस को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इसे आधार बनाकर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
हिसाब मांगना कोई अपराध नहीं
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने मामले की सुनवाई की। पीठ ने कहा कि भारतीय समाज में पुरुष अक्सर पैसों पर नियंत्रण रखते हैं। यह एक सामाजिक हकीकत हो सकती है। लेकिन इसे ‘क्रूरता’ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि पत्नी के आरोप बहुत सामान्य थे। उनमें किसी घटना का समय या सबूत नहीं था। यह शादीशुदा जिंदगी की आम नोकझोंक जैसी बात है।
क्या था पत्नी का आरोप?
एक महिला ने अपने पति पर गंभीर आरोप लगाए थे। उसने कहा था कि पति उसे हर खर्च का हिसाब एक्सेल शीट में लिखने को मजबूर करता है। महिला का आरोप था कि पति अपने माता-पिता को पैसे भेजता है। इसके अलावा, डिलीवरी के बाद वजन बढ़ने पर पति उसे ताने मारता था। पुलिस ने इन आरोपों पर पति के खिलाफ क्रूरता का केस दर्ज कर लिया था। पति ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
मोटापे पर ताना मारना अनैतिक, पर अपराध नहीं
कोर्ट ने पति द्वारा माता-पिता को पैसे भेजने को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि यह कोई अपराध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने वजन को लेकर ताने मारने पर भी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि प्रसव के बाद पत्नी के वजन पर ताना मारना नैतिक रूप से गलत है। लेकिन इसे कानूनी रूप से ‘क्रूरता’ नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि इससे पति की छवि खराब हो सकती है, लेकिन यह जेल भेजने लायक अपराध नहीं है।
बदले की भावना से कानून का इस्तेमाल गलत
अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि वैवाहिक झगड़ों में कानून का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिसाब बराबर करने के लिए आपराधिक मुकदमे दर्ज नहीं कराए जाने चाहिए। अदालतों को ऐसे मामलों में बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है। कोर्ट ने माना कि यह प्रक्रिया का दुरुपयोग था, इसलिए एफआईआर रद्द कर दी गई।
