Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसान नए मुकाम हासिल कर रहे हैं। हमीरपुर जिले के एक किसान ने इस विधि से सालाना लाखों रुपये की आय अर्जित की है। अमर सिंह नामक इस किसान ने जहरमुक्त खेती को अपनाया है। वह सुरक्षित फल और सब्जियां उगा रहे हैं।
अमर सिंह नादौन उपमंडल के गांव साधबड़ के निवासी हैं। उन्होंने पारंपरिक प्राकृतिक खेती की विधि को अपनाया है। परिवार की जरूरतों के अलावा वह स्थानीय बाजार में सब्जियां बेचते हैं। इससे उन्हें साल में लगभग एक लाख रुपये तक की आय होती है।
रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती की ओर
अमर सिंह पहलेरासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग करते थे। इससे खेती पर अधिक खर्च आता था। उनके खेतों में जहर घुल रहा था और जमीन की उर्वरा शक्ति कम हो रही थी। फल और सब्जियों में भी यह रसायन पहुंच रहा था।
कुछ वर्ष पहले उन्हें पॉलीहाउस और प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने सबसे पहले पॉलीहाउस और नर्सरी लगाई। इससे उन्हें काफी फायदा हुआ। फिर उन्होंने प्राकृतिक खेती की ओर कदम बढ़ाने का निर्णय लिया।
कृषि विभाग की आत्मा परियोजना के अधिकारियों ने उन्हें मार्गदर्शन दिया। प्रदेश सरकार की योजना के तहत उन्हें दो दिन का विशेष प्रशिक्षण मिला। प्राकृतिक खेती के लिए जरूरी सामग्री और ड्रम पर अस्सी प्रतिशत सब्सिडी दी गई। अब वह पूरी तरह प्राकृतिक विधि से खेती करते हैं।
स्वयं बनाते हैं जीवामृत
अमर सिंह घर पर हीजीवामृत तैयार करते हैं। वह गोबर, गोमूत्र, शक्कर और बेसन का प्रयोग करते हैं। इस प्राकृतिक तरल को वह अपने खेतों में उपयोग करते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और फसलें स्वस्थ होती हैं।
उन्होंने अपने खेत में अमरुद, पपीता और कीवी के पेड़ भी लगाए हैं। अन्य फलदार पेड़ों से भी उन्हें अतिरिक्त आय प्राप्त होती है। सब्जियों की विभिन्न किस्में उगाकर वह बाजार में बेचते हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है।
भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत सूक्ष्म सिंचाई को प्रोत्साहन दिया जाता है। इससे पानी की बचत होती है और फसल उत्पादन बढ़ता है।
रासायनिक मुक्त खेती से पर्यावरण को भी लाभ मिलता है। मिट्टी और भूजल प्रदूषण की समस्या कम होती है। जैव विविधता का संरक्षण होता है और पारिस्थितिकी तंत्र स्वस्थ रहता है। किसानों को स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद मिलते हैं।
प्राकृतिक खेती का आर्थिक लाभ
प्राकृतिक खेतीमें लागत कम आती है। किसानों को महंगे रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक नहीं खरीदने पड़ते। स्वयं बनाए गए जीवामृत और अन्य जैविक उत्पादों से खेती की जाती है। इससे शुद्ध और पौष्टिक उत्पाद प्राप्त होते हैं।
बाजार में जैविक उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ता अधिक कीमत देकर ऐसे उत्पाद खरीदने को तैयार हैं। इससे किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिलता है। आय में वृद्धि होती है और जीवन स्तर सुधरता है।
अमर सिंह की सफलता से आसपास के किसान प्रेरित हुए हैं। वह भी प्राकृतिक खेती की ओर रुख कर रहे हैं। कृषि विभाग के अधिकारी नियमित मार्गदर्शन देते हैं। प्रशिक्षण शिविर और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती को राज्यव्यापी अभियान बनाया है। सब्सिडी और तकनीकी सहायता से किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसका सकारात्मक प्रभाव कृषि क्षेत्र और पर्यावरण पर दिख रहा है। किसानों की आय बढ़ाने में यह विधि मददगार साबित हो रही है।
