Health News: भारत में स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यह समस्या अब सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही। युवा और मध्यम आयु वर्ग के लोग भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। खराब जीवनशैली और अनियंत्रित रक्तचाप इसके प्रमुख कारण हैं। शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में हर साल 300 से 400 मरीज स्ट्रोक का इलाज करवाते हैं।
आईजीएमसी के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। 2021 से 2024 के बीच स्ट्रोक के अधिकतर मरीज 61 साल से ऊपर के थे। पुरुषों में यह समस्या अधिक देखी गई। कुल मामलों में 64 प्रतिशत पुरुष और 36 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं। डॉक्टरों का मानना है कि धूम्रपान और शराब इसकी बड़ी वजह हैं।
स्ट्रोक के प्रकार
स्ट्रोक मुख्य रूप से दो तरह का होता है। पहला है इस्केमिक स्ट्रोक जो दिमाग की नस में थक्का जमने से होता है। यह सबसे आम प्रकार है और 80 प्रतिशत मामलों में पाया जाता है। दूसरा प्रकार है रक्तस्रावी स्ट्रोक जो दिमाग की नस फटने से होता है। यह अधिक गंभीर और जानलेवा हो सकता है।
विशेषज्ञों के अनुसार स्ट्रोक के कई जोखिम कारक हैं। उच्च रक्तचाप, मधुमेह और उच्च कोलेस्ट्रॉल प्रमुख हैं। धूम्रपान, अत्यधिक शराब सेवन और अनियमित दिल की धड़कन भी खतरे बढ़ाते हैं। मोटापा और तनाव भी स्ट्रोक के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं।
लक्षणों की पहचान
स्ट्रोक के लक्षणों को पहचानना बेहद जरूरी है। अचानक चेहरे का टेढ़ा हो जाना प्रमुख लक्षण है। बोलने में कठिनाई या समझने में परेशानी हो सकती है। शरीर के एक हिस्से में अचानक कमजोरी या सुन्नपन आना। आंखों में धुंधलापन या देखने में दिक्कत होना भी संकेत हैं।
तेज सिरदर्द, चक्कर आना या चलने में समस्या हो सकती है। इनमें से कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्ट्रोक दुनिया भर में मौत का दूसरा बड़ा कारण है।
सुनहरे चार घंटे
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर शर्मा के मुताबिक स्ट्रोक के बाद साढ़े चार घंटे बेहद महत्वपूर्ण हैं। इस ‘गोल्डन आवर’ में मरीज को सीटी स्कैन सुविधा वाले अस्पताल पहुंचाना चाहिए। इस दौरान आईवी थ्रोंबोलिसिस इंजेक्शन देकर रक्त के थक्के को घोला जा सकता है। इससे मरीज के पूरी तरह ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है।
डॉक्टर घरेलू उपचार करने से मना करते हैं। लक्षण दिखते ही तुरंत अस्पताल जाएं। देरी से मरीज को स्थायी नुकसान हो सकता है। अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के दिशा-निर्देश भी त्वरित इलाज पर जोर देते हैं।
सर्दियों में सावधानी
ठंड के मौसम में स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। शरीर को गर्म रखने के लिए ऊनी कपड़े पहनें चाहिए। नियमित रूप से गुनगुना पानी पीते रहना चाहिए। बिस्तर से उठकर तुरंत ठंड में नहीं निकलना चाहिए। डॉक्टर की सलाह पर नियमित दवाएं लेनी चाहिए।
तेल वाले भोजन और तनाव से दूर रहना चाहिए। धूम्रपान और शराब का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। नियमित व्यायाम और स्वस्थ खानपान से स्ट्रोक का खतरा कम होता है। रक्तचाप और शुगर को नियंत्रित रखना बेहद जरूरी है।
हिमाचल में जागरूकता
हिमाचल प्रदेश में स्ट्रोक के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए विशेष अभियान चलाया जा रहा है। एचपी टेलीस्ट्रोक अभियान के तहत लोगों को शिक्षित किया जा रहा है। इसके लक्षणों और त्वरित इलाज की जानकारी दी जा रही है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा विशेष कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं।
स्ट्रोक से बचाव के लिए जीवनशैली में सुधार जरूरी है। संतुलित आहार और नियमित व्यायाम से खतरा कम होता है। नियमित स्वास्थ्य जांच और डॉक्टर की सलाह मानना फायदेमंद रहता है। समय पर इलाज से गंभीर परिणामों से बचा जा सकता है।
