India News: आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा, जिसे शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, इस बार 6 अक्टूबर को मनाई जाएगी। यह दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की आराधना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि इस रात मां लक्ष्मी धरती पर अवतरित होती हैं और जो भक्त जागरण करते हैं, उन्हें आशीर्वाद देती हैं। इस साल पूर्णिमा तिथि के साथ भद्रा और पंचक जैसे योग भी बन रहे हैं, जिससे व्रत और पूजा के समय का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होगा।
पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 6 अक्टूबर 2025 को दिन में 11:24 बजे से शुरू होकर 7 अक्टूबर को दिन में 9:35 बजे तक रहेगी। कोजागरी पूर्णिमा का व्रत एवं मां लक्ष्मी की विशेष आराधना 6 अक्टूबर की रात्रि में की जाएगी क्योंकि इसमें रात्रि व्यापिनी पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस रात कुबेर देव की पूजा का भी विधान है। वहीं, स्नान, दान, पाराशर जयंती, रास पूर्णिमा और बाल्मीकि जयंती जैसे धार्मिक कार्य 7 अक्टूबर को संपन्न किए जाएंगे।
इस वर्ष शरद पूर्णिमा के दिन भद्रा का साया रहेगा। 6 अक्टूबर को भद्रा दोपहर 12:23 बजे से शुरू होकर रात 10:53 बजे तक रहेगी। हालांकि पूर्णिमा के दिन भद्रा के दोष का विचार नहीं किया जाता, फिर भी इस अवधि में किसी भी प्रकार के शुभ कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है। इसलिए पूजा-अनुष्ठान के समय का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
पंचक का प्रभाव
इसके साथ ही शरद पूर्णिमा पर पंचक का प्रभाव भी रहेगा। पंचक 3 अक्टूबर से शुरू होकर 8 अक्टूबर तक रहेगा। इस बार लगने वाले पंचक को चोर पंचक कहा जा रहा है। अक्टूबर माह में इस साल दो बार पंचक लग रहे हैं। पंचक के दौरान कुछ विशेष कार्यों को करने की मनाही होती है, इसलिए शुभ कार्यों की योजना बनाते समय इसकी जानकारी होना आवश्यक है।
कोजागरी पूर्णिमा का महत्व
कोजागरी पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। ऐसी मान्यता है कि इस रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता है। इस रात बनने वाले खीर को चंद्रमा की किरणों में रखने की परंपरा है। माना जाता है कि ऐसा करने से यह खीर अमृत के समान बन जाती है और इसे ग्रहण करने से स्वास्थ्य लाभ मिलता है। यह रात्रि जागरण और लक्ष्मी पूजन का विशेष फल देती है।
पूजन विधि और सामग्री
इस दिन सायंकाल के समय घर के मंदिर में स्वच्छता पूर्वक स्थान बनाएं। एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। पूजन में लाल फूल, मौली, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि का उपयोग करें। खीर, मिष्ठान और फल का भोग लगाएं। लक्ष्मी स्तोत्र या मंत्रों का उच्चारण करते हुए रात्रि जागरण करें। सुबह होने पर प्रसाद को परिवारजनों में वितरित करें।
व्रत कथा और मंत्र
इस दिन लक्ष्मी जी से जुड़ी व्रत कथा सुनने और पढ़ने का विधान है। ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः’ मंत्र का जाप करना अत्यंत फलदायी माना गया है। कथा सुनने के बाद दान-पुण्य करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। साथ ही पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व बताया गया है। जो लोग नदी तक नहीं जा सकते, वे घर पर ही जल में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
सामाजिक और धार्मिक प्रसार
देश भर के विभिन्न मंदिरों में इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। वृंदावन और मथुरा में रास पूर्णिमा का पर्व अद्भुत श्रद्धा और भक्ति के वातावरण के साथ मनाया जाता है। यहां भगवान कृष्ण का श्रृंगार रासलीला से जुड़े प्रसंगों के अनुसार किया जाता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु इस अवसर पर इन पावन स्थलों पर एकत्रित होते हैं और भगवान के दर्शनों का पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।
इस प्रकार, शरद पूर्णिमा का यह पावन पर्व आध्यात्मिक उन्नति और भौतिक समृद्धि दोनों का स्रोत माना जाता है। उचित विधि-विधान से पूजन और व्रत का पालन करने से भक्तों के जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है। इसलिए इस बार कोजागरी पूर्णिमा के अवसर पर शास्त्रों में बताए गए नियमों का पालन करते हुए मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करें।
