Pune News: पुणे की राजनीति में शुक्रवार को बड़ा उलटफेर देखने को मिला। पूर्व महापौर प्रशांत जगताप ने सभी अटकलों को खत्म करते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया है। उन्होंने दो दिन पहले ही शरद पवार की एनसीपी (SP) से इस्तीफा दिया था। जगताप के इस कदम ने Pune News की सुर्खियों को गर्मा दिया है। यह फैसला पुणे नगर निगम (PMC) चुनावों से ठीक पहले आया है। जगताप का कांग्रेस में जाना शरद पवार गुट के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
गठबंधन की अटकलों से थे नाराज
जगताप ने अजित पवार गुट के साथ गठबंधन की खबरों का विरोध किया था। दरअसल, ऐसी चर्चा थी कि स्थानीय चुनावों के लिए शरद पवार की पार्टी, अजित पवार की एनसीपी के साथ हाथ मिला सकती है। जगताप ने इसे अपनी विचारधारा के खिलाफ बताया था। मुंबई में प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सकपाल की मौजूदगी में वे कांग्रेस में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि उनकी लड़ाई भाजपा, आरएसएस और सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ है। Pune News के अनुसार, वे गांधी-नेहरूबो और शाहू-फुले-अंबेडकर के विचारों को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
कांग्रेस की उम्मीदों को मिली नई उड़ान
जगताप के आने से कांग्रेस में नया जोश भर गया है। पुणे नगर निकाय चुनाव 15 जनवरी को होने वाले हैं। इससे पहले कांग्रेस के कई उम्मीदवार पार्टी छोड़ चुके थे। ऐसे में जगताप का आना कांग्रेस के लिए संजीवनी जैसा है। 2017 के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत खराब था और उसे सिर्फ नौ सीटें मिली थीं। अब प्रशांत जगताप के जुड़ने से Pune News में कांग्रेस की स्थिति मजबूत होने का दावा किया जा रहा है।
धर्मनिरपेक्षता के लिए ठुकराए अन्य ऑफर
जगताप ने कहा कि उनका फैसला वानोवरी और हडपसर के मतदाताओं के हित में है। उन्होंने हमेशा धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के आधार पर समर्थन मांगा है। वे अपने समर्थकों को धोखा नहीं दे सकते थे। जगताप ने खुलासा किया कि शिवसेना के दोनों गुटों ने उन्हें ऑफर दिया था। लेकिन उन्होंने कांग्रेस को चुना क्योंकि यह उनकी विचारधारा से मेल खाती है। शिवसेना (UBT) नेता सचिन अहीर ने भी माना कि फैसला जगताप का अपना है।
पार्टी के भीतर विरोध के स्वर
हालांकि, कांग्रेस का एक धड़ा इस फैसले से पूरी तरह खुश नहीं है। Pune News के मुताबिक, पुणे कांग्रेस के कुछ नेताओं ने जगताप को शामिल करने पर असंतोष जताया है। एक नेता ने कहा कि उन्हें आलाकमान का फैसला मानना होगा। बता दें कि प्रशांत जगताप दो बार पार्षद रह चुके हैं। जब एनसीपी सत्ता में थी, तब वे पुणे के महापौर भी थे। पार्टी टूटने से पहले वे पुणे में एनसीपी का बड़ा चेहरा माने जाते थे।
