शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

यौन शिक्षा: सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, कहा, छोटी उम्र से ही होनी चाहिए पाठ्यक्रम में शामिल

Share

National News: एक महत्वपूर्ण फैसले में, न्यायालय ने स्कूली पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा को लेकर सख्त टिप्पणी की है। अदालत ने राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए पाठ्यक्रम पर असहमति जताई। कोर्ट का मानना है कि यौन शिक्षा को कक्षा 9 से 12 तक सीमित रखना उचित नहीं है। इसे बच्चों की छोटी उम्र से ही पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।

न्यायालय ने यह टिप्पणी यौन शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने के एक मामले की सुनवाई के दौरान की। राज्य सरकार ने अदालत में एक हलफनामा दायर करके बताया था कि वर्तमान पाठ्यक्रम एनसीईआरटी के निर्देशों के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि यौन शिक्षा पहले से ही कक्षा 9 से 12 तक के पाठ्यक्रम में शामिल है।

हालांकि, अदालत इस सीमा से सहमत नहीं हुई। न्यायाधीशों ने इस समय-सीमा को अपर्याप्त बताया। उन्होंने कहा कि यौन शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर आवश्यक और सुधारात्मक कदम उठाने की जिम्मेदारी अब अधिकारियों पर है। कोर्ट ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अपने विवेक का इस्तेमाल करें।

यौन शिक्षा पर कोर्ट की स्पष्ट राय

अदालत ने जोर देकर कहा कि बच्चों को यौवन के बाद होने वाले शारीरिक और मानसिक बदलावों की जानकारी सही समय पर मिलनी चाहिए। न्यायालय ने कहा, ‘संबंधित अधिकारियों को अपने विवेक का प्रयोग करके सुधारात्मक उपाय करने चाहिए।’ इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बच्चों को प्यूबर्टी के दौरान होने वाले परिवर्तनों और संबंधित देखभाल की पूरी जानकारी मिले।

यह भी पढ़ें:  हापुड़: शबाना ने अपने डेढ़ साल के बेटे की दूसरी मंजिल से फेंका, हॉस्पिटल पहुंचने से पहले हुई मौत; जानें पूरा मामला

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बच्चों के शारीरिक विकास और उससे जुड़ी सावधानियों के बारे में शिक्षा देना अत्यंत आवश्यक है। यह जानकारी उन्हें सुरक्षित और जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद करेगी। अदालत का मानना है कि देरी से मिलने वाली शिक्षा का प्रभाव कमजोर पड़ जाता है।

राज्य सरकार का पक्ष

मामले की सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार ने एक अतिरिक्त हलफनामा दायर किया था। इसमें उन्होंने अपने मौजूदा पाठ्यक्रम का बचाव किया। सरकार ने दावा किया कि उनका पाठ्यक्रम राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के दिशा-निर्देशों के पूर्णतः अनुरूप बनाया गया है।

सरकार के अनुसार, यौन शिक्षा संबंधी विषय वस्तु पहले से ही माध्यमिक स्तर की कक्षाओं में पढ़ाई जा रही है। उनका तर्क था कि यह व्यवस्था पर्याप्त और उचित है। लेकिन न्यायालय ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया और इसे और विस्तारित करने पर जोर दिया।

शिक्षा प्रणाली में आवश्यक बदलाव

इस फैसले से शिक्षा नीति में बदलाव की संभावना बढ़ गई है। अब संबंधित अधिकारियों को पाठ्यक्रम की समीक्षा करनी होगी। उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि यौन शिक्षा की शुरुआत प्राथमिक स्तर से ही हो। इससे बच्चों को शुरुआती उम्र में ही सही ज्ञान मिल सकेगा।

यह भी पढ़ें:  दिल्ली-एनसीआर में जारी रहेगी बारिश: जानें अगले 7 दिनों के मौसम का पूर्वानुमान

विशेषज्ञों का लंबे समय से मानना रहा है कि आयु-उपयुक्त यौन शिक्षा बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है। यह उन्हें गलत जानकारी और संभावित खतरों से बचाने में मददगार साबित होती है। सही समय पर दी गई जानकारी बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाती है।

सामाजिक जागरूकता और भूमिका

यह मामला स्कूली शिक्षा में यौन शिक्षा के महत्व को रेखांकित करता है। एक समय था जब इस विषय पर खुलकर बात करना टैबू माना जाता था। लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं। समाज में इसकी आवश्यकता को समझा जा रहा है।

न्यायालय के इस फैसले से शैक्षणिक संस्थानों पर भी दबाव बनेगा। उन्हें अपनी शिक्षण पद्धतियों में बदलाव करना होगा। शिक्षकों को भी इस विषय को पढ़ाने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।

यौन शिक्षा पर यह चर्चा एक बड़े बदलाव का संकेत देती है। इससे बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास बेहतर तरीके से हो सकेगा। अब यह देखना होगा कि संबंधित अधिकारी अदालत के निर्देशों का किस तरह से पालन करते हैं। उम्मीद है कि जल्द ही पाठ्यक्रम में सकारात्मक बदलाव देखने को मिलेंगे।

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

Read more

Related News