Mandi News: सराज क्षेत्र में तीस जून को आई प्राकृतिक आपदा ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इस आपदा में सात लोगों की मौत हुई और इक्कीस लोग अभी भी लापता हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि प्राकृतिक कारणों से अधिक मानवीय लापरवाही इसके लिए जिम्मेदार है। अवैज्ञानिक खनन और अवैध निर्माण ने पारिस्थितिकी को गंभीर नुकसान पहुंचाया।
आपदा ने सैकड़ों घरों, दुकानों, स्कूलों और सड़कों को नष्ट कर दिया। थुनाग, बगस्याड़, जरोल, कुथाह, बूंगरैलचौक और पांडवशीला जैसे इलाके सबसे अधिक प्रभावित हुए। दो महीने बाद भी दो सौ छियासठ किलोमीटर सड़कें बंद पड़ी हैं।
मानवीय हस्तक्षेप ने बढ़ाई समस्या
वन संरक्षण अधिनियम की अवहेलना कर एक सौ इक्यासी सड़कें बनाई गईं। इनके निर्माण में हजारों पेड़ काटे गए और मलबा नदियों में डंप किया गया। इससे प्राकृतिक जल स्रोत अवरुद्ध हुए और भूमिगत दबाव बढ़ा। अधिवक्ता नरेंद्र रेड्डी ने बताया कि अरबों रुपये खर्च होने के बावजूद तिरपन सड़क प्रस्ताव मंजूरी के इंतजार में हैं।
स्थानीय इनोवेटर ओम प्रकाश ठाकुर ने कहा कि सड़क निर्माण और डंपिंग से प्राकृतिक स्रोत बंद हो गए। इससे पानी का प्राकृतिक बहाव रुक गया और भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न हुई। कशमल की खोदाई से बागाचनोगी उपतहसील की सात पंचायतों में भूस्खलन बढ़ा।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन ने हिमाचल में तापमान शून्य दशमलव नौ डिग्री सेल्सियस बढ़ाया है। इससे मानसून की तीव्रता में वृद्धि हुई है। बगस्याड़ के दिवांशु ठाकुर ने ग्रीनहाउस फूल उद्योग से होने वाले गैस उत्सर्जन को जलवायु परिवर्तन का कारक बताया।
केंद्रीय विश्वविद्यालय जम्मू-कश्मीर के प्रोफेसर सुनील धर ने कहा कि अनियोजित सड़कें और अपर्याप्त रिटेनिंग वॉल ने पहाड़ों की स्थिरता कमजोर की है। खड्डों और नदी किनारों पर असुरक्षित बस्तियां बसाई गई हैं। हिमालय नीति अभियान के संयोजक गुमान सिंह ने चेतावनी दी कि हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी को नजरअंदाज करने से त्रासदियां बढ़ेंगी।
भू धंसाव की चपेट में गांव
जिले के विभिन्न उपमंडलों में बहत्तर गांव भूस्खलन और जमीन धंसने की चपेट में हैं। बालचौकी उपमंडल के अधिकतर गांवों में भू धंसाव हो रहा है। इससे घरों में दरारें आ गई हैं। पानी की सही निकासी न होने से पहाड़ दरक रहे हैं।
पराशर इलाका भी इससे अछूता नहीं है। जोगिंद्रनगर के कुडनी गांव में भूस्खलन ने कई परिवारों को बेघर कर दिया है। धर्मपुर विस क्षेत्र के कई गांवों में भी यही स्थिति है। आपदा रोकथाम के लिए इन स्थानों को भूवैज्ञानिक जांच के लिए चिह्नित किया गया है।
वन अधिकारी नाचन सुरेंद्र कश्यप ने प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से निर्माण और वनीकरण की आवश्यकता बताई। आपदा प्रभावित जंगलों में नई पौधारोपण की योजना है।
