New Delhi News: अरावली की पहाड़ियों को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने खुद पहल की है। कोर्ट ने अरावली की परिभाषा बदलने से जुड़ी चिंताओं पर स्वतः संज्ञान लिया है। ऐसी आशंका है कि नए नियमों से बेरोक-टोक माइनिंग और पर्यावरण नुकसान का रास्ता खुल सकता है। सुप्रीम कोर्ट की विशेष वेकेशन बेंच अब सोमवार, 29 दिसंबर को इस मामले पर विचार करेगी।
पर्यावरण और माइनिंग पर चिंता
अरावली की परिभाषा में बदलाव के बाद से ही सार्वजनिक विरोध हो रहा था। पर्यावरण विशेषज्ञों ने इसको लेकर गहरी चिंता जताई है। उनका मानना है कि परिभाषा बदलने से पहले से संरक्षित इलाकों में भी माइनिंग और निर्माण को कानूनी मान्यता मिल सकती है। सुप्रीम कोर्ट का यह दखल पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अरावली क्षेत्र रेगिस्तान को फैलने से रोकने और भूजल स्तर को बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाता है।
क्या है पूरा विवाद?
दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में अरावली को लेकर अलग-अलग नियम थे। इसके कारण अवैध खनन को रोकना मुश्किल हो रहा था। इसे सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पहले एक हाई-लेवल कमेटी बनाई थी। इसी साल नवंबर में तत्कालीन चीफ जस्टिस की बेंच ने वन मंत्रालय की नई परिभाषा को स्वीकार किया था। इसके तहत 100 मीटर की ऊंचाई वाली जमीन को ही पहाड़ी माना गया है। साथ ही दो पहाड़ियों के बीच 500 मीटर की दूरी होने पर उसे अरावली रेंज माना जाएगा।
सोमवार को होगी अहम सुनवाई
अब इस मामले की गंभीरता को देखते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत की बेंच सुनवाई करेगी। इस बेंच में जस्टिस जे के महेश्वरी और जस्टिस ए जी मसीह भी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि माइनिंग की अनुमति देने से पहले एक ठोस प्लान तैयार किया जाए। अब देखना होगा कि कोर्ट 29 दिसंबर को क्या फैसला लेता है।
